भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के हक के लिये लड़ने वाले अब्दुल जब्बार का कल निधन हो गया | जिसके साथ ही भ्रष्ट और मतलबपरस्त सिस्टम से संघर्ष की एक अनूठी दास्तान इतिहास बन गई |
2 और 3 दिसंबर 1984 को भोपाल गैस त्रासदी ने हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया | हजारों लोग तड़प तड़प कर मरने के लिये बीमारियों के साथ जीवित रहे |
the iconic photograph of the horrific gas tragady
ऐसा ही एक श्रमिक था अब्दुल जब्बार, जिसने इस हादसे में अपने पिता, मां और भाई को खोया | खुद उसे फेफड़ों का फाइब्रोसिस हो गया और आंखों की आधी रोशनी जाती रही |
लेकिन अपनी हिम्मत और मानवता के जज़्बे के बल पर वो इंसान खड़ा हुआ, लाखों लोगों का सहारा बना और जब्बार भाई कहलाया |
हादसे के ठीक बाद घायलों को अस्पताल पंहुचाने और मृतकों के पोस्टमार्टम में सहायता से शुरू हुआ यह सफर एक आंदोलन बन गया |
जब्बार ने भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन 1987 में स्थापित किया | और ख़ैरात नहीं रोजगार चाहिये का नारा बुलंद किया |
तीन दशकों तक जब्बार प्रदर्शन, धरने के साथ साथ अदालतों में याचिकाएं दायर करते रहे | ताकि पीड़ितों को मुआवजा और स्वास्थ्य सुविधाएं तथा यूनियन कार्बाइड के अधिकारियों को दंड मिल सके |
यदि जब्बार न होते तो हजारों पीड़ितों को कुछ भी हासिल न होता |
सिस्टम से इस जंग के साथ साथ उन्होंने स्वाभिमान केंद्र की स्थापना की, जिससे हजारों महिलाओं को रोजगार मिला |
जब्बार की सामाजिक सक्रियता उस त्रासदी को लोगों के मन में जीवित रखने की रही | सरकार द्वारा वॉरेन एंडरसन को निकल जाने देने, या शहर के बीच ऐसे जहरीले संयंत्र को लगाने की अनुमति देने के विरोध में साप्ताहिक मीटिंग का दौर जारी रहा |
अंत तक वो पीड़ितों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और मुआवजा दिलाने के लिये लड़ते रहे |
जब्बार की मृत्यु के साथ ही एक जन संघर्ष की महागाथा का अंत हो गया |
श्रद्धांजलि