केंद्र सरकार पिछले दिनों कृषि कानून लेकर आई जिसके लिए सरकार ने दावा किया कि इससे किसानों की आय तेजी से बढ़ेगी।
लेकिन इस बिल का विरोध हुआ और अभी यह विरोध किसानों के द्वारा दिल्ली के घेराव और विरोध प्रदर्शन तक पहुंच गया है।
जिससे कि सरकार बैकफुट पर आ गई है।
गौर करने की बात है कि आखिर ऐसा क्या है जो किसान इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं ।
बहुत गहराई में ना जाते हुए हम सिर्फ इतना देखते हैं कि
किसानों को पूरे देश में और किसी भी व्यक्ति को अपना कृषि उत्पाद बेचने की अनुमति होगी।
अब देखने में तो यह किसानों के हक में लगता है, पर किसान इसका विरोध क्यों कर रहे हैं।
दरअसल लंबे समय से किसान अपने उत्पादों को सरकारी कृषि मंडियों में एमएसपी दर पर बेचते आये हैं,
जो भले कम रहती है लेकिन उनकी आय सुनिश्चित करती है।
परंतु इस कृषि बिल में किसान एमएसपी के प्रावधानों को लेकर सरकार से उखड़े हुए हैं।
दूसरी ओर लंबे समय से केंद्र सरकार पर अंबानी और अडानी समूह को लाभ पहुंचाने के आरोप लगते रहे हैं।
यद्यपि केंद्र सरकार हमेशा यह कहती आई है कि हम सबका साथ सबका विकास पर बल दे रहे हैं,
परंतु जिओ के तेजी से उठने से और अन्य टेलीकॉम कंपनियों के तेज़ी से गिरने से प्रश्न तो उठता ही है।
वहीं दूसरी ओर बीएसएनएल लगातार घाटे में चल रही है और सरकार उसे पुनर्जीवित करने के लिए कोई बड़ा प्रयास करते नहीं दिख रही।
इसी तरह से अगर रक्षा डीलों को देखा जाए तो चाहे वह स्कॉर्पियन पनडुब्बी की बात हो या राफेल निर्माण की,
भारत में इन्हें बनाने के ठेके प्राइवेट कंपनियों को ही दिए गए।
इन सब बातों का निचोड़ को देखते हुए किसान अपनी आय को लेकर शंका ग्रस्त हैं।
क्योंकि यह बात हर कोई जानता है कि पूंजीपति पहले अपना लाभ देखेगा और फिर कोई काम करेगा।
इस बात की पुष्टि कुछ इस तरह भी होती है कि कृषि बिल आने से ठीक पहले अदानी समूह में पूरे भारत के कृषि क्षेत्रों में स्वयं को कृषि फर्म के रूप में रजिस्टर करा करवा लिया।
आखिर कृषि क्षेत्र जो भारत में लगभग नुकसान में ही चलता है में काम करने के लिए अदानी समूह इतना आतुर क्यों है ?
रिलायंस मार्ट भी कृषि क्षेत्र में लंबे समय से सेंध लगा रहा है। आईटीसी जैसी अन्य कंपनियां भी इस क्षेत्र में प्रवेश कर रही हैं।
लेकिन अडाणी समूह के तीव्र गति से किए गए निवेश पर सवाल उठना लाजमी है।
आखिर ऐसा क्या है कि इस विधेयक में के पारित होने से ठीक पहले अदानी समूह कृषि क्षेत्र में पूरी तैयारी के साथ कूद पड़ा है।
अगर आलोचकों की मानें तो कहानी कुछ यूं है कि सरकार एमएसपी पर खरीद को कम करेगी, जिसके कारण किसानों को प्राइवेट सेक्टर के हाथों अपना सामान बेचने पर मजबूर होना पड़ेगा और प्राइवेट सेक्टर इस स्थिति का लाभ जरूर उठाएगा और किसानों से सस्ता माल खरीद कर जनता से मुनाफा कमाएगा।
यद्यपि यह बात अभी भविष्य के गर्त में हैं, लेकिन किसान डटे हुए हैं कि यह कानून वापस लिया जाए।
देखना है कि अब ऊंट किस करवट बैठता है।
ताजा जानकारी यह है कि किसानों ने अब सरकार का विरोध करने के साथ-साथ प्राइवेट कंपनियों का भी विरोध शुरू कर दिया है।
जिसकी पहल रिलायंस समूह के जियो सिम को अन्य टेलीकॉम कंपनियों में पोर्ट करवाने से की जा रही है।