ब्लॉग – Event Review https://eventreview.in Event Review Fri, 03 May 2024 04:40:06 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.3 230734881 आरक्षण का मुद्दा गरमाया https://eventreview.in/reservation-issue-heated-up/ https://eventreview.in/reservation-issue-heated-up/#respond Fri, 03 May 2024 04:40:06 +0000 https://eventreview.in/?p=9125 चुनाव प्रचार में इन दिनों आरक्षण का मुद्दा गरमाया हुआ है। प्रारंभिक तौर पर आरक्षण को सबसे निचले वर्गों की जातियों को आर्थिक तथा राजनीतिक संबल प्रदान करने के लिए वैधानिक तौर पर आरक्षण प्रदान किया गया था। बाद में आरक्षण का विस्तार होता गया और इसमें नये-नये जाति समूह शामिल होते चले गए।आरक्षण प्राप्त करने के लिए जाट और मराठा जैसे शक्तिशाली समूहों को आंदोलन की राह पकडऩी पड़ी।

दरअसल, जो आरक्षण निचली पायदान पर खड़े जाति समूहों के उत्थान के लिए था, वह सभी जाति समूहों के लिए राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने का हथियार बन गया। कहने की जरूरत नहीं है कि आज आरक्षण भारतीय समाज के एक बहुत बड़े वर्ग में असंतोष और चिंता का कारक बना हुआ है।

हिन्दू समाज के अनारक्षित जाति समूह मानते हैं कि उनके साथ अन्याय किया जा रहा है। ऐसी सूरत में एक ऐसे आर्थिक ढांचे पर बल दिए जाने की जरूरत थी जिसमें बिना आरक्षण की सीढ़ी के सभी निचले वर्ग के लोगों को उत्थान के अवसर प्राप्त हों और जातीय आग्रह सामाजिक विग्रह के कारण न बनें लेकिन अब आरक्षण की नीति एक चिंताजनक मोड़ पर ले आई है। एक ओर जहां कांग्रेस के नेता विशेषकर राहुल गांधी आरोप लगा रहे हैं कि मोदी तीसरी बार सत्ता में आए तो संविधान बदल देंगे और आरक्षण खत्म कर देंगे। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी हर सभा में कह रहे हैं कि कांग्रेस ने आरक्षण को मुस्लिम तुष्टिकरण का नया औजार बना लिया है।

वह बार-बार कर्नाटक का उदाहरण दे रहे हैं जहां कांग्रेस ने सभी मुस्लिम जातियों को पिछड़े वर्ग में शामिल करके पिछड़े वर्ग के कोटे से ही 4 प्रतिशत का आरक्षण दे दिया जिसे बाद में भाजपा सरकार ने निरस्त कर दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जहां भाजपा सरकार के फैसले पर रोक लगा दी गई है।

मोदी अपनी हर सभा में खुलकर कह रहे हैं कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो दलित और पिछड़ों का आरक्षण समाप्त कर मुसलमानों को दे देगी। संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं है। लेकिन कांग्रेस ने चोर दरवाजे से कर्नाटक में आरक्षण देकर जो कदम उठाया है, उसके दुष्परिणाम समझ नहीं पा रही। बेशक, भाजपा को विरोध का बड़ा चुनावी मुद्दा मिल गया है।

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जंगलों में आग, तबाही के बाद ही होते हैं बचाव और सुरक्षा को लेकर सचेत https://eventreview.in/people-become-conscious-about-safety-and-security-only-after-forest-fire-and-destruction/ https://eventreview.in/people-become-conscious-about-safety-and-security-only-after-forest-fire-and-destruction/#respond Thu, 02 May 2024 04:31:30 +0000 https://eventreview.in/?p=9085 उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की यह कोई पहली या नई घटना है। हर वर्ष गर्मी में कई जगहों पर आग लगने की वजह से आसपास का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। इस बार तापमान में बढ़ोतरी के साथ अभी ही राज्य में पांच सौ से ज्यादा आग लगने के मामले सामने आ चुके हैं।

किसी हादसे का सबसे बड़ा सबक यह होना चाहिए कि ऐसे इंतजाम किए जाएं, ताकि भविष्य में वैसे हालात से बचा जा सके। हैरानी की बात है कि उत्तराखंड के जंगलों में हर वर्ष आग लगने और उससे व्यापक नुकसान होने की घटनाओं के बावजूद इस ओर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी जाती। इस बार फिर नैनीताल और उसके आसपास के जंगलों में आग लगी और फैल कर खतरनाक शक्ल ले चुकी है।

आग से पर्यटन कारोबार पर भी पड़ा असर
बीते दो-तीन दिनों में कुमाऊं के जंगलों में पच्चीस से ज्यादा जगहों पर आग लग गई। वनाग्नि की इन घटनाओं में जहां करीब चौंतीस हेक्टेयर क्षेत्रफल में वन संपदा को नुकसान पहुंचा है, वहीं नैनीताल और आसपास के इलाकों में पर्यटन कारोबार पर भी इसका विपरीत असर पड़ा है। आग बुझाने के लिए भीमताल के पानी का उपयोग किया जा रहा है, जिससे उस झील में पर्यटन गतिविधियां ठप पड़ गई हैं। इससे इलाके की अर्थव्यवस्था पर काफी नकारात्मक असर पड़ने की आशंका है।

नैनीताल के जंगलों में लगी आग हुई बेकाबू, मदद के लिए जमीन पर उतरी सेना, हेलीकॉप्टर भी बुलाए गए
ऐसा नहीं कि उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की यह कोई पहली या नई घटना है। हर वर्ष गर्मी में कई जगहों पर आग लगने की वजह से आसपास का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। इस बार तापमान में बढ़ोतरी के साथ अभी ही राज्य में पांच सौ से ज्यादा आग लगने के मामले सामने आ चुके हैं। विडंबना है कि प्रत्यक्ष आशंका और खतरा होने के बावजूद गर्मी की शुरुआत के पहले सरकार की ओर से आग लगने के लिहाज से संवेदनशील जगहों पर बचाव और आग को फैलने से रोकने के पर्याप्त इंतजाम नहीं किए जा सके।

जंगल में कुछ ऐसे खाली क्षेत्र तैयार किए जा सकते हैं, जहां जलाशय बनाए जा सकते हैं कि अगर किसी क्षेत्र में आग लगे, तो उसे फैलने से रोका जा सके और बुझाने में मदद मिले। इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि क्या आग लगने की घटनाओं में कुछ अराजक तत्त्वों का हाथ है! मगर आम हो चुकी वनाग्नि की घटनाओं के बावजूद सरकार को इस ओर ध्यान देना शायद जरूरी नहीं लगता। नतीजतन, हर वर्ष राज्य में जंगलों का बड़ा हिस्सा वनाग्नि से तबाह होता है।

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सामाजिक-आर्थिक विकास का वाहक बन रहा मध्यम वर्ग https://eventreview.in/middle-class-becoming-the-driver-of-socio-economic-development/ https://eventreview.in/middle-class-becoming-the-driver-of-socio-economic-development/#respond Wed, 01 May 2024 04:36:05 +0000 https://eventreview.in/?p=9048  -डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
माने या ना माने पर इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी भी देश के आर्थिक-सामाजिक विकास में मध्यम वर्ग की प्रमुख भूमिका रही है। यह केवल हमारे देश के संदर्भ में ही नहीं अपितु समूचे विश्व की बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं का अध्ययन किया जाएगा तो कारण यही सामने आएगा। सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के बदलाव में मध्यम वर्ग की प्रमुख भूमिका रही है। औद्योगिक क्रांति के बाद जिस तरह से श्रमिक वर्ग उभर कर आया तो औद्योगिक क्रांति का ही बाई प्रोडक्ट मध्यम वर्ग का उत्थान माना जा सकता है। आर्थिक विश्लेषकों की माने तो आर्थिक विकास का कोई ग्रोथ इंजन है तो वह मध्यम वर्ग है। ज्यादा दूर नहीं जाए और केवल वर्तमान दशक की शुरुआत बल्कि 2021 की ही बात करें तो देश में 30 फीसदी परिवार मध्यम आय वर्ग की श्रेणी में आ गए थे। ऐसा माना जा रहा है कि 2031 तक यह आंकड़ा बढ़कर 46 फीसदी को छू जाएगा। यानी की इस दशक में बचे साढ़े पांच साल में भी मध्यम आय वर्ग की श्रेणी में तेजी से सुधार होगा। 2021 में जहां 9।1 करोड़ परिवार मध्यम आय वर्ग की श्रेणी में थे वहीं 2031 तक यह संख्या बढ़कर 16।9 करोड़ होने का अनुमान लगाया गया है। किसी भी देश और उसकी अर्थव्यवस्था के लिए यह अपने आप में किसी बढ़ी उपलब्धि से कम नहीं आंकी जा सकती। विशेषज्ञों के अनुसार 5 लाख से 38 लाख सालान आय वाले परिवारों को मध्यम आय वर्ग श्रेणी में माना गया है। यह भी समझना होगा कि मध्यम वर्ग का विस्तार का सीधा सीधा अर्थ गरीबी रेखा से लोगों का बाहर आना और बाजारु गतिविधियों में तेजी आने का कारण मध्यम वर्ग ही है। मांग और आपूर्ति को भी मध्यम वर्ग के संदर्भ में ही देखा और समझा जा सकता है।

मध्यम आय वर्ग में इजाफा होने का मतलब साफ-साफ यह हो जाता है कि देश की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। इसे यों समझा जा सकता है कि मध्यम आय वर्ग या दूसरे अर्थ में हम मध्यम वर्ग की बात करें तो जीवन जीने का कोई आनंद लेता है तो वह मध्यम वर्ग ही है। मध्यम वर्ग के लोग जीवन को जीने में विश्वास रखते हैं भले ही उन्हें कृत्वा घृतं पीबेत की मानसिकता के अनुसार जीवन यापन करना पड़ें। यही कारण है कि मध्यम वर्ग दिल खोलकर पैसा खर्च करता है। इसका एक कारण सामाजिक ताने-बाने की भाषा मेंं हम कहें तो यह कहा जा सकता है कि बहुत कुछ वह दिखावे के लिए करता है। जीवन यापन की दिखावे की इस प्रतिस्पर्धा में वह वो सब कुछ पाना चाहता है जो उसके परिवार, पड़ोसी, मित्रगण या आसपास के लोगों के पास है। इसमें रहन-सहन, खान-पान, पहनना-ओढ़ना, शिक्षा और इसी तरह की अन्य वस्तुओं/साधनों को प्राप्त करना मध्यम वर्ग का ध्येय रहता है और इसी कारण बाजार में नित नए उत्पादों की मांग बढ़ती है तो देश के लोगों के जीवन स्तर का पता चलता है।

दरअसल मध्यम वर्ग व्हाईट कॉलर का प्रतिनिधित्व करता है। वह इस प्रयास में रहता है कि दिन प्रतिदिन वह अधिक से अधिक साधन जुटाएं, भले ही उसके लिए उसे उधार का सहारा लेना पड़े। यहां यह भी समझ लेना जरुरी हो जाता है कि उच्च आय वर्ग की अपनी समझ व पहुंच होती है। पहली बात तो उच्च आय वर्ग की दायरे में कम लोग है। उनकी पसंद ना पसंद अलग होती है। उनके लिए जो उत्पाद बाजार में आएंगे वो अलग श्रेणी के होंगे। मध्यम वर्ग लगभग उसी दौड़ में दौड़ने का प्रयास करता है। उच्च वर्ग के पास लक्जिरियस चौपहिया वाहन है तो उसकी मांग पहले चरण में चौपहिया वाहन व उसके बाद ज्यों-ज्यों वह थोड़ा आगे बढ़ना चाहेगा अपनी पहुंच के सुविधाजनक चौपहिया वाहन पाने की कोशिश में जुट जाएगा। इसी तरह से बाजार की मांग को मध्यम वर्ग ही बढ़ाता है।

तस्वीर हमारे सामने हैं। ज्यादा पुरानी बात नहीं दो दशक ही हुए होंगे कि घरों में पंखों की जगह कूलरों ने ली और कूलरों में भी हैसियत अनुसार ब्राण्डेड कंपनियों से लेकर लोकल कंपनियों के कूलरों ने घरों में जगह बनाई। आज तस्वीर का दूसरा पहलू सामने आ गया है जिस एयर कण्डीशनर के लिए केवल सोचा जा सकता था वह आज घर-घर में पहुंच गया है। कम से कम एक एसी तो मध्यम वर्गीय परिवार में देखने को आसानी से मिल जाएगा। इसे यों समझा जा सकता है कि मध्यम वर्ग के विस्तार के अनुसार बाजार में मांग बढ़ी तो नित नई कंपनियां बाजार में आई और इससे अर्थव्यवस्था को गति मिलने के साथ ही रोजगार के अवसर बढ़े। यह तो एक उदाहरण मात्र है। देखा जाए तो फास्टफूड हो या कंफेक्षनरी या शॉफ्ट ड्रिंक या इसी तरह की अन्य खाने-पीने की चीजें इसको बाजार मिला है तो इसका श्रेय मध्यम वर्ग को ही जाता है। पर्सनल केयर आइटम्स की मांग और आपूर्ति भी मध्यम वर्ग के कारण ही बढ़ी है। आज आॅन लाईन का जो बाजार खड़ा हुआ है उसको गति दी है तो वह मध्यम आय वर्ग के लोगों ने ही दी है। स्कूटर, स्कूटी, कार से लेकर वाहनों की जो रेलमपेल देखी जा रही है वह इस मध्यम वर्ग के कारण ही है। रियल स्टेट जिस तरह से आगे बढ़ रहा है और गगनचुंबी इमारतों का जिस तरह से जाल बिछ रहा है वह मध्यम वर्ग के कारण ही संभव हो पा रहा है। यही कारण है कि आज देशी विदेशी कंपनियां मध्यम वर्ग को केन्द्रीत कर अपने उत्पादों को बाजार में उतार रही है। सही मायने में कहा जाए तो जिसने मध्यम वर्ग की मांग को समझा वह मालामाल होता जा रहा है और उसकी बाजार में पकड़ तेज होती जा रही है।

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वन्‍यजीवों द्वारा मानवजीवन को खतरा, आखिर क्‍या है कुदरत का खेल https://eventreview.in/threat-to-human-life-by-wild-animals-what-is-natures-game-after-all/ https://eventreview.in/threat-to-human-life-by-wild-animals-what-is-natures-game-after-all/#respond Tue, 30 Apr 2024 04:34:36 +0000 https://eventreview.in/?p=9010 मानवी राजपूत
मानव और वन्य जीव संघर्ष एक गम्भीर समस्या बन चुकी है। हालांकि वन्य जीवों के संरक्षण के लिए वन विभाग की भारी-भरकम मशीनरी लाखों रुपए खर्च करती है लेकिन वह भी इस गम्भीर समस्या के आगे असहाय नजर आ रही है। आए दिन शहरों में खतरनाक वन्य जीव घुस आते हैं और मनुष्यों पर हमले कर देते हैं जिससे मौतें भी होती हैं और वन्य जीवों को भी पकड़ने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। कई बार वन्य जीवों को भी जान से हाथ धोना पड़ता है। देेश की राजधानी दिल्ली की एक रिहायशी बस्ती में आमदखोर तेंदुए ने घुसकर एक दर्जन लोगों पर हमला किया। उसके हमले में पांच लोग घायल हो गए। पूरे इलाके में खौफ कायम है। इस आदमखोर तेंदुए को पकड़ने के लिए वन विभाग की टीम को काफी मेहनत करनी पड़ी। इससे पहले भी पिछले वर्ष दिसम्बर में हाई प्रोफाइल इलाके सैनिक फार्म में तेंदुए ने दहशत फैला दी थी। हालांकि कई घंटों बाद उसे दबोच लिया गया था। महानगरों में ही नहीं बल्कि उत्तराखंड और कुछ अन्य राज्यों में ऐसी घटनाएं लगातार देखने को मिल रही हैं।

अब सवाल यह है कि वन्य जीवों के शहरों में घुसने की समस्या के लिए जिम्मेदार किसे माना जाए। क्या इसके लिए केवल वन विभाग को जिम्मेदार माना जाए या फिर मानव को इसके लिए जिम्मेदार माना जाए। कोई जानवर किसी इंसान की जान का दुश्मन कब बनता है? आज क्यों दोनाें ही एक-दूसरे की बलि लेने पर अमादा हो जाते हैं? आखिर वन्य प्राणी अपने आश्रय स्थलों को छोड़ने के लिए विवश क्यों हुए? दरअसल वनों पर अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप ही वन्य जीवों के साथ मानव के संघर्ष का प्रथम कारण बना। वनों का व्यावसायिक उपयोग, उद्योग जगत का विस्तार और आधुनिक जीवनशैली तथा बाजारीकरण और नगरीय सभ्यता के विकास ने दुनिया के कोने-कोने में कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए। सड़कों का जाल ऐसे बिछा कि जंगल के बाशिंदे भोजन और आवास के लिए तरसने लगे। परिणामस्वरूप उनका पदार्पण मानव बस्तियों की ओर होने लगा। तो क्या विकासपरक नीतियां ही मानव और वन्य जीवों के संघर्ष के पीछे महत्वपूर्ण कारक है? जंगलों के दोहन के साथ सेंचुरी और नेशनल पार्क के निर्माण ने वनों के आस-पास निवास करने वाले स्थानीय निवासियों को उनके हक से वंचित किया है। जबकि यह वही स्थानीय निवासी थे जिन्होंने सदियों से बिना व्यावसायिक दोहन के हमेशा वनों का उचित उपयोग करते हुए उसके संरक्षण का भी काम किया था। विडंबना ही कहेंगे कि इस मुद्दे को सिरे से नकार दिया जाता है। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले विमर्श हाशिये के समाजों की जीवनशैली को समझने में असमर्थ ही रहे हैं।

सरकार जंगलों को बचाने के लिए भले ही लाख प्रयास करे लेकिन हकीकत यह है कि वन्य क्षेत्र लगातार कम होते जा रहे हैं। जंगल काट-काट कर रिहायशी काॅलोनियां बसाई जा चुकी हैं। पर्यटन के नाम पर जंगलों को कमाई का केन्द्र बना दिया है। वन क्षेत्र में सफारी और जंगल रिजॉर्ट बना दिए गए हैं। इस सबसे वन्य जीवों की निजता का हनन हो रहा है। यही कारण है कि वन्य जीव इंसानी बस्तियों में आने लगे हैं। इतने सारे वन्य संरक्षण पार्क और सेंचूरी बन जाने के बावजूद वन्य जीवनों का हमला बढ़ता जा रहा है। हालांकि इस समस्या के कई अन्य कारण भी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जंगलों में शिकार की कमी और पानी की कमी भी वन्य जीवों का शहरों की तरफ आना भी कारण है। यह एक ऐसी समस्या है जो पहाड़ी राज्यों के जीवन, जीविका और समाज को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। उत्तराखंड के गांव में रहने वाले लोग आमदखोर जानवरों के आतंक की वजह से अपने गांव छोड़कर शहरी इलाकों में बसने लगे हैं।

सबसे अधिक आतंक गुलदारों का है जो घर, आंगन और खेत-खलिहानों में धमक कर जान के खतरे का सबब बने हुए हैं। गुलदार तो आबादी वाले क्षेत्र में ऐसे घूम रहे हैं जैसे मवेशी हों। बाघ भी गांव में घुसकर हमले कर रहे हैं। कभी हाथी मेरे साथी की कहावत बहुत मशहूर थी लेकिन अब हाथी मानव के साथ नहीं रहे हैं। झारखंड, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल आदि राज्यों में गजराज के हमलों में लोग मारे जा रहे हैं। वन्य जीवों के हिंसक हो जाने के भी कई कारण हैं। आमदखोर जानवर महिलाओं, बच्चों को अपना निवाला बना रहे हैं। वन विभाग इन्हें पकड़ भी लेता है लेकिन उन्हें दूसरी जगह रेलोकेट नहीं किया जाता जो एक खतरनाक प्रक्रिया है। यह भी सच है कि देश में इनका अवैध शिकार भी लगातार हो रहा है। इस गम्भीर समस्या का समाधान अब गम्भीरता से करना होगा। जब तक इनके लिए आरक्षित क्षेत्रों में इंसानी दखलंदाजी को रोका नहीं जाता, जंगलों की अंधाधुंध कटाई रोकी नहीं जाती और विकास के नाम पर विनाश की प्रक्रिया बंद नहीं की जाती तब तक वन्य जीव बनाम इंसान संघर्ष जारी रहेगा।

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देश में चुनावी नवाचार एवं मतदान प्रतिशत https://eventreview.in/electoral-innovations-and-voting-percentage-in-the-country/ https://eventreview.in/electoral-innovations-and-voting-percentage-in-the-country/#respond Mon, 29 Apr 2024 04:37:28 +0000 https://eventreview.in/?p=8969  -डॉ. सुभाष गंगवाल
देश में लोकसभा 2024 के लिए 543 सीटों में से प्रथम चरण में लगभग 102 सीटों के लिए मतदान सम्पन्न हो चुका है, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि मतदान का प्रतिशत पूर्व लोकसभा चुनाव 2019 की तुलना में लगभग 6 प्रतिशत कम हुआ है। प्रथम चरण में 64 प्रतिशत मतदान हुआ है, जबकि लोकसभा 2019 में यह प्रतिशत 70 था। राज्यों में त्रिपुरा में सर्वाधिक 80 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि बिहार में सबसे कम 48 प्रतिशत मतदान हुआ है। बहुत से राज्यों में मतदान प्रतिशत 50 प्रतिशत के समक्ष रहा है। राजस्थान में भी प्रथम चरण में लोकसभा चुनाव 2019 की तुलना में लोकसभा चुनाव 2024 में लगभग 6 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। निश्चित ही मताधिकार प्रतिशत का गिरना लोकतंत्र की दृष्टि से चिंता का विषय है। इसके कारणों की जांच व विश्लेषण की आवश्यकता है। यद्यपि यह भी देखना है कि आगामी समय में 6 चरणों में 441 लोकसभा चुनाव में मताधिकार का उपयोग किया जाना है।

देश में 543 लोकसभा सीटों के लिए लगभग 100 करोड़ मतदाता मतदान करेंगे। जिसमें लगभग आधे मतदाता महिलाएं हैं तथा लगभग 60 प्रतिशत  मतदान युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो कि देश का भविष्य है। लोकसभा 2014 में 2019 के चुनाव में युवा मतदाता का प्रतिशत बढ़ा था जो कि सरकार बनाने में अधिक मददगार रहा था। लेकिन युवा मतदान के संदर्भ में एक चिंताजनक तथ्य यह आया है कि 18 से 25 वर्ष के युवा मतदाता का मात्र 38 प्रतिशत ने ही लोकसभा 2024 के लिए अपने आप को मतदाता के रूप में रजिस्टर्ड करवाया है। इसका आशय है कि लगभग 62 प्रतिशत मतदाता जो बन सकते हैं उनकी मताधिकार में रुचि ही नहीं है। वह चुनाव के प्रति न सजग, न जागरूक। बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्टÑ आदि में केवल 25 प्रतिशत या कम ने अपने को मताधिकार के लिए रजिस्टर्ड करवाया है। ऐसे में यह मुद्दा चुनाव आयोग, केंद्रीय राज्य सरकार, राजनीतिक दल व विश्लेषकों के लिए गंभीर चिंतन व विश्लेषण का विषय है कि आखिर क्या कारण रहे हैं कि भारतीय चुनाव आयोग एवं सरकारी मशीनरी एवं तंत्र द्वारा मतदाता तक पहुंचाने के लिए किए गए नवाचारों की बावजूद मतदान प्रतिशत कम क्यों हुआ। देश में चुनाव सुधारों को लेकर गंभीर प्रयास लगभग दो दशक पूर्व चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन द्वारा किए गए थे तथा इसके पश्चात मतदाताओं को चुनाव से जोड़ने के लिए विभिन्न कार्यक्रम लागू किए गए हैं।

देश स्वतंत्र निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव करवाने की जिम्मेदारी भारतीय चुनाव आयोग की है। भारतीय चुनाव आयोग मतदान तक पहुंचाने के प्रति अत्यधिक जागरुक है। विभिन्न कार्यक्रम चलाए जाते हैं तथा आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी तकनीक एवं एप्स का भी सहारा लिया जा रहा है। चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत को बढ़ाने के लिए अनेक नवाचार लागू किए हैं। जिसके अंतर्गत मतदान का समय 2 घंटे बढ़ा दिया है। पहले 2 घंटे के लिए मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए पहली बार बने मतदाता, नव विवाहित वर-वधु आदि को हर बूथ पर 50 सर्टिफिकेट जारी किए गए हैं। सरकारी कर्मचारियों के लिए जो कि चुनाव की ड्यूटी देते हैं डाक के स्थान पर सर्विस वोट डालने की व्यवस्था ड्यूटी स्थल पर ही किए जाने की व्यवस्था की गई है। 85 वर्ष या अधिक उम्र के मतदाताओं के लिए घर पर ही वोटिंग की सीधा प्रदान की गई है। सीनियर सिटीजन को वोट डालने में प्राथमिकता की व्यवस्था की गई है। चुनाव पूर्व स्विप कार्यक्रम चलाया जाता है जिसमें स्कूलों के छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, नगर निगम आदि को जोड़ा जाता है। लेकिन लगता है कि यह प्रयास पर्याप्त नहीं है, राजनीतिक दलों मतदाताओं में राजनीतिक विश्लेषण का यह मानना है कि यह चुनाव कांटे की टक्कर का नहीं है। मतदाता का मानना है कि मोदी फैक्टर काम करेगा तो सरकार तो मोदी के नेतृत्व की बनेगी। आशा है कि यह चुनाव टक्कर का न होकर एक तरफा है तो मतदान करने से क्या फायदा है।

स्थानीय नेताओं ने मतदाताओं को मतदान स्थल तक पहुंचने में कोई उत्साह नहीं दिखाया। दूर-दराज एवं ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान स्थल तक पहुंचना आसान नहीं होता है तथा यातायात व्यवस्था एक समस्या है, लेकिन निजी एवं सरकारी वाहन के चुनाव कार्य में व्यस्त हो गए तथा कार्यकर्ता एवं पार्टी द्वारा मतदान स्थल तक लाने व ले जाने में रुचि नहीं दिखाई। देश में शादी, लगातार सरकारी छुट्टियां, गर्मी का मौसम भी मतदान प्रतिशत में कमी का कारण बताया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि युवा मतदाता मताधिकार को लेकर उदासीन क्यों हुआ है, जबकि सोशल मीडिया पर तो वह सक्रिय रहता है, लेकिन मतदान स्थल पर वोट डालने की प्रति रुचि नहीं रखता है। आज का युवा रोजगार को लेकर अत्यधिक निराश है। राजनीतिक दलों द्वारा युवाओं को लेकर चुनावी घोषणाएं तो बहुत की जाती है लोक लुभावन वायदे किए जाते हैं लेकिन युवा मतदाताओं को निराशा ही हाथ लगी है।

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रक्षा क्षेत्र में बढ़ेगी धाक https://eventreview.in/there-will-be-increase-in-defense-sector/ https://eventreview.in/there-will-be-increase-in-defense-sector/#respond Sun, 28 Apr 2024 04:41:27 +0000 https://eventreview.in/?p=8936 ब्रह्मोस सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल भारत ने फिलीपींस को दे दी। दोनों देशों के बीच 37.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर में समझौता 2022 में हुआ था। भारतीय वायु सेना के अमेरिकी मूल के सी-17 के ग्लोब मास्टर ट्रांसपोर्ट एअरक्राफ्ट से फिलीपींस मरीन क्राप्स को ये हथियार सौंपे। यह ऑर्डर 290 किलोमीटर की रेंज वाली एंटी शिप क्रूज मिसाइल के तट आधारित संस्करण के लिए है। ब्रह्मोस सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल भारत-रूस का संयुक्त उद्यम है। भारत डीआरडीओ और रूस के एनपीओ मशिनोस्ट्रोयेनिया इसके प्रमुख साझेदार हैं। ब्रह्मोस की धाक पूरी दुनिया में है तथा यह पहला अंतरराष्ट्रीय ऑडर है। अंदाजा है कि फिलीपींस इसे अपने तटीय इलाकों में तैनात करेगा।

इस मिसाइल पण्राली में लॉन्चर, वाहन, लोडर, कमांड और नियंत्रण केंद्र आदि शामिल हैं। भारत के पास लंबी दूरी की कई अन्य मिसाइलें भी हैं। मगर फिलीपींस को दी गई  मिसाइलें मूल रूप से छोटी बताई जा रही हैं, जो बिल्कुल नई हैं तथा उस खेप का हिस्सा नहीं हैं, जो भारतीय सशस्त्र बल के पास हैं।

यह प्रसिद्ध हथियार ऐसे वक्त सौंपा जा रहा है, जब दक्षिण चीन सागर में लगातार झड़पें चालू हैं जिससे दोनों मुल्कों के दरम्यान लगातार तनाव बढ़ रहा है। चूंकि ये मिसाइलें दस सेकेंड के भीतर दुश्मन को निशाना बना सकती हैं, इसलिए कहा जा रहा है कि फिलीपींस समुद्र में अपनी ताकत बढ़ा कर चीन से आमने-सामने झड़प के लिए अपनी सेना को तैयार कर रहा है। हमारे विशेषज्ञ फिलीपींस की सेना को इसकी विशेष ट्रेंनिंग भी देंगे जो इस ऑर्डर में लिखित है। इससे न सिर्फ रक्षा क्षेत्र में हमारी धाक बढ़ेगी, बल्कि हमारी सेना का मनोबल भी ऊंचा हो सकेगा।

अपनी इन क्षमताओं के बूते साउथ ईस्ट एशिया में भारत प्रमुख शस्त्र निर्यातक बनने की तैयारी भी कर सकता है, जो वैिक तौर पर भारत की बदलती छवि को लेकर बेहतरीन भूमिका निभाने वाला साबित हो सकता है। नि:संदेह अपने यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है। विभिन्न क्षेत्रों में अपने यहां विशेषज्ञों की धाक जमी हुई है। यदि उन्हें बेहतर मौके मिलते हैं, तो वे देश का नाम रोशन करने के साथ ही चौतरफा अनुभव बटोर सकेंगे और उत्साहजनक ढंग से प्रतिस्पर्धात्मक क्षेत्रों में अव्वल आने के मौके नहीं चूकने का बेहतरीन प्रयास करेंगे।

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विकास के दावों के बीच भूख की त्रासदी झेलने के लिए लोग मजबूर https://eventreview.in/amidst-claims-of-development-people-are-forced-to-face-the-tragedy-of-hunger/ https://eventreview.in/amidst-claims-of-development-people-are-forced-to-face-the-tragedy-of-hunger/#respond Sat, 27 Apr 2024 04:41:21 +0000 https://eventreview.in/?p=8896  विश्‍वनाथ झा
यह अपने आप में एक बड़ा विरोधाभास है कि जिस दौर में दुनिया भर में अर्थव्यवस्था के चमकते आंकड़ों के जरिए लगातार विकास का हवाला दिया जाता है, उसमें करोड़ों लोगों को पेट भरने के लिए खाना तक नहीं मिलता है। यह अफसोसनाक हकीकत एक तरह से विकास के दावों के सामने आईना है, जो इस बात पर विचार करने जरूरत को रेखांकित करता है कि इसकी दिशा क्या है और आखिर यह किसके लिए है।
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र ने बुधवार को ‘ग्लोबल रिपोर्ट आन फूड क्राइसिस’ यानी खाद्य संकट पर वैश्विक रिपोर्ट में यह खुलासा किया कि विश्व के उनसठ देशों के लगभग 28.2 करोड़ लोग सन 2023 में भूख से तड़पने को लाचार हुए। भूख का सामना करने वाले लोगों की तादाद 2022 के मुकाबले 2.4 करोड़ ज्यादा रही।रिपोर्ट के मुताबिक, भूखे रहने वालों में बच्चे और महिलाएं सबसे ज्यादा हैं। इसके अलावा, बत्तीस देशों में पांच वर्ष से कम उम्र के 3.6 करोड़ अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। साथ ही युद्ध और अन्य प्राकृतिक आपदाओं की वजह से बढ़ते विस्थापन के बीच पिछले वर्ष कुपोषण की समस्या और ज्यादा गहरी हो गई।

सवाल है कि दुनिया भर में और खासतौर पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों में अगर भूख सहित कई बड़ी समस्याओं से लड़ने के लिए सामूहिक जिम्मेदारी की बात की जाती है तो इस त्रासदी के लिए किसे जवाबदेह ठहराया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि बीस देशों में भूख की मुख्य वजह वहां चल रहे हिंसक संघर्ष थे।

दूसरा बड़ा कारण यह था कि बढ़ते तापमान या मौसम से संबंधित आपदाओं, कीटों के हमले और महामारी के बीच करीब सात करोड़ सत्तर लाख से ज्यादा लोगों को उच्च स्तर की गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा। इसी तरह, खाने-पीने की चीजों की महंगाई, आयातित खाद्य वस्तुओं पर निर्भरता, उच्च ऋण स्तर आदि वजहों से भी लोगों को भूख की समस्या से रूबरू होना पड़ा। सवाल है कि संयुक्त राष्ट्र की ओर से या वैश्विक स्तर पर भुखमरी के लिए जिन कारणों को चिह्नित किया गया है, उसका हल निकालने की कोशिश किसे करनी है और वह कब होगा।

यह एक जगजाहिर तथ्य है कि संयुक्त राष्ट्र या फिर अन्य संस्थाओं की ओर से विश्व भर में भूख के संकट पर अक्सर अध्ययन रपटें जारी की जाती हैं। उसमें कारण भी बताए जाते हैं। मगर उन्हें दूर करने को लेकर बात औपचारिकताओं से आगे नहीं बढ़ पाती। अन्यथा क्या वजह है कि वर्षों से भुखमरी के हालात कायम रहने के बावजूद इस दिशा में अब तक कोई ठोस हल सामने नहीं आ सका है। उल्टे आर्थिक और सामरिक स्तर पर दुनिया के ताकतवर देश भुखमरी की त्रासदी की ओर ध्यान दिलाए जाने पर भी उसके समाधान को लेकर शायद ही कोई रुचि दिखाते हैं। गरीबी, जलवायु परिवर्तन आदि से उपजी समस्याओं से अगर कोई देश ज्यादा प्रभावित होता है तो सक्षम देश उनकी मदद के लिए क्या करते हैं? संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि युद्धग्रस्त गाजा में सबसे ज्यादा लोगों ने अकाल की गंभीर स्थिति का सामना किया। सवाल है कि संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था के होते हुए भी युद्धग्रस्त इलाकों में ऐसे हालात कैसे लंबे समय तक बने रहते हैं और युद्ध को खत्म कराने के प्रयास महज दिखावे के क्यों साबित होते हैं कि लोगों के सामने भूख से तड़पने की नौबत आती है।

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सेहत में बड़ा सहारा, पैंसठ वर्ष से अधिक आयु के लोगों को भी स्वास्थ्य बीमा https://eventreview.in/big-help-in-health-health-insurance-for-people-above-sixty-five-years-of-age/ https://eventreview.in/big-help-in-health-health-insurance-for-people-above-sixty-five-years-of-age/#respond Fri, 26 Apr 2024 04:43:55 +0000 https://eventreview.in/?p=8860 मनोज भूटानी
गंभीर और ऐसी बीमारियों, जिनके इलाज में भारी रकम खर्च करनी पड़ती है, स्वास्थ्य बीमा लोगों के लिए बहुत बड़ा सहारा साबित होता है। स्वास्थ्य बीमा शुरू करने का मकसद भी यही था कि लोगों को स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च की चिंता से मुक्त रखा जा सके। मगर इसमें एक बड़ी अड़चन थी कि पैंसठ वर्ष से अधिक उम्र के लोग स्वास्थ्य बीमा नहीं खरीद सकते थे। आमतौर पर ज्यादातर लोगों को इसी उम्र के बाद स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां घेरती हैं।

मगर स्वास्थ्य बीमा न खरीद पाने के चलते वे निराश हो जाते थे। फिर, कैंसर, हृदय रोग या एड्स जैसी कुछ गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों को इसकी सुविधा उपलब्ध नहीं थी। इसके अलावा, स्वास्थ्य बीमा खरीदने के बाद अड़तालीस महीने तक उसका लाभ नहीं उठाया जा सकता था। अब भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण ने इन अड़चनों को दूर करते हुए नियम जारी किया है कि पैंसठ वर्ष से अधिक आयु के लोग भी स्वास्थ्य बीमा खरीद सकेंगे। यानी अब किसी भी उम्र में स्वास्थ्य बीमा खरीदा जा सकता है। बीमा कंपनियां अब कैंसर, एड्स और हृदय रोग जैसी बीमारियों की वजह से किसी को बीमा देने से इनकार नहीं कर सकतीं। बीमा खरीदने के छत्तीस महीने बाद उसका लाभ उठाया जा सकेगा।

बीमा क्षेत्र को विस्तार देने और प्रतिस्पर्धी बनाने के मकसद से इस क्षेत्र में निजी बैंकों और विदेशी कंपनियों के लिए सौ फीसद निवेश का रास्ता खोला गया था। फिर बीमा कंपनी बदलने की भी छूट दे दी गई थी। निस्संदेह इससे बीमा कंपनियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी और लोगों को इसका लाभ मिलना भी शुरू हो गया। मगर स्वास्थ्य बीमा के मामले में कई तरह की अड़चनें बनी हुई थीं। उम्र और कुछ गंभीर बीमारियां इस रास्ते में बड़ी बाधा थीं। अब उनके हट जाने से निस्संदेह बहुत सारे लोगों के लिए आसानी हो जाएगी।

अब जिस तरह जलवायु परिवर्तन और बदलती स्थितियों के चलते अनेक प्रकार की नई-नई बीमारियां पैदा हो रही हैं और बहुत सारे लोगों के लिए इलाज कराना मुश्किल होता जा रहा है, उसमें बीमा कंपनियों का वृद्धावस्था की ओर बढ़ती आबादी को इस सुविधा से वंचित रखना उचित नहीं था। दुनिया के अनेक देशों में वृद्धों की सेहत पर विशेष ध्यान दिया जाता है, मगर जिस तरह हमारे देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ और उनमें सुविधाओं का अभाव बढ़ता गया है, उसमें बुजुर्ग आबादी की सेहत का ध्यान रखना चुनौती बनता गया है।

ऐसे में स्वास्थ्य बीमा की शर्तों को लचीला बनाने से कुछ बेहतर नतीजे मिल सकते हैं। मगर अब भी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को पुख्ता, पारदर्शी और प्रभावशाली बनाने की जरूरत रेखांकित की जाती रहती है। केंद्र सरकार ने आयुष्मान योजना के तहत करोड़ों लोगों को स्वास्थ्य बीमा की सुविधा उपलब्ध करा रखी है। कुछ लोग कंपनियों आदि की सामूहिक बीमा के अंतर्गत आते हैं। कुछ लोगों ने निजी स्तर पर स्वास्थ्य बीमा ले रखा है। मगर चूंकि स्वास्थ्य बीमा की सुविधा का लाभ निजी अस्पतालों में ही लिया जाता है, वहां इनके दावे आदि को लेकर कई तरह की अनियमितताओं की शिकायतें मिलती रहती हैं। कोरोना काल के बाद स्वास्थ्य बीमा की वार्षिक किस्तें पचास फीसद से अधिक बढ़ चुकी हैं। इसलिए स्वास्थ्य बीमा नियमों को लचीला बनाने के साथ-साथ इन्हें व्यावहारिक और पारदर्शी बनाने की दिशा में भी भरोसेमंद कदम उठाने की जरूरत है।

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युवाओं में हार्ट अटैक- सिर्फ एक नहीं, कारण अनेक https://eventreview.in/heart-attack-in-youth-not-just-one-many-reasons/ https://eventreview.in/heart-attack-in-youth-not-just-one-many-reasons/#respond Thu, 25 Apr 2024 04:38:49 +0000 https://eventreview.in/?p=8823  -अतुल मलिकराम
यार उसे हार्ट अटैक कैसे आ सकता है? वह तो हट्टाकट्टा जवान और एकदम फिट था! पिछले दो-चार सालों में हार्ट अटैक के कुछ आश्चर्यजनक मामले देखने के बाद आपके भी जहन में यह सवाल जरूर उठा होगा। जहां हार्ट अटैक को कभी बुजुर्गों को होने वाली बीमारी समझा जाता था, वह आज 25 से 40 आयु वर्ग के युवाओं के दिलों को भी अपनी चपेट में लेने लगा है। कोई क्रिकेट खेलते हुए अचानक हार्ट अटैक का शिकार हो जाता है, तो कोई डांस करते-करते दिल पकड़कर भगवान को प्यारा हो रहा है, कोई जिम में एक्सरसाइज करते हुए तो कोई योग-ध्यान में बैठे-बैठे ही अपने दिल की धड़कनों को थमते हुए देख रहा है। ऐसे मामले सोशल मीडिया पर वायरल वीडियोज में काफी देखने को मिल रहे हैं। लेकिन हार्ट अटैक के मामले में कुछ ऐसे नाम भी सामने आए हैं, जिनकी लाइफस्टाइल देखकर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि उन्हें दिल का दौरा पड़ सकता है, जैसे बिग बॉस विनर और यूथ आइकॉन सिद्धार्थ शुक्ला, मशहूर प्लेबैक सिंगर केके और महज 25 साल के तमिल व हिन्दी टीवी एक्टर पवन सिंह…।

जब अपनी हेल्थ और फिटनेस को लेकर बेहद एलर्ट रहने वाले ये सेलिब्रिटीज भी हार्ट अटैक का शिकार हो सकते हैं, तो जाहिर तौर पर मामला गंभीर और डराने वाला है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में 40-69 साल के आयु वर्ग में होने वाली मौतों में से 45 प्रतिशत मामले दिल की बीमारियों के होते हैं। तो अब सवाल यह है कि भारत में खासकर युवाओं में दिल की बीमारियां आखिर इतनी तेजी से घर क्यों कर रही हैं? क्या स्ट्रेस इसका प्रमुख कारण है? जवाब हां या न जो भी हो, लेकिन इससे निजात पाने के लिए हम सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से क्या प्रयास कर रहे हैं, यह गौर करने वाली बात है।

मेडिकल एक्सपर्ट्स की मानें, तो भारतीय युवाओं की लाइफस्टाइल में हो रहे अंधाधुंध बदलाव, इसका एक प्रमुख कारण हो सकते हैं, जो उनके शरीर में डायबिटीज, मोटापा, बीपी या बैड कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों को बढ़ावा दे रहे हैं और ये बीमारियां सीधे तौर पर हार्ट अटैक के खतरे को दिन-प्रतिदिन बढ़ावा दे रही हैं। हालांकि लाइफस्टाइल के साथ-साथ रिलेशनशिप से जुड़े भावुक मामले, घर से अधिक बाहरी खाने पर निर्भरता, ऑफिस के काम का जरुरत से अधिक प्रेशर व स्ट्रेस, डेली रूटीन पर न के बराबर ध्यान, सोने का लगातार कम होता समय और शौक के चक्कर में अत्यधिक शराब व सिगरेट का सेवन, जैसी आदतें भी युवा दिलों को बीमार करने का कारण बन रही हैं।
ऐसे में हम सीधे तौर पर स्ट्रेस को युवाओं में हार्ट अटैक से जोड़कर नहीं देख सकते, बल्कि उपरोक्त कारणों के आधार पर खुद की दिनचर्या में झांकने और उसे सुधारने की जरुरत के हिसाब से भी समझ सकते हैं। स्ट्रेस एक कारण जरूर हो सकता है, लेकिन वह है क्यों, उसे समझने की क्षमता विकसित करना बहुत जरुरी है। डॉक्टर्स या हेल्थ एक्सपर्ट्स आपको आपका दिल तंदरुस्त रखने के कई उपायए जैसे आपकी डाइट में ओमेगा फैटी एसिड से भरपूर चीजें और हरी सब्जियां शामिल करने का सुझाव दे सकते हैं, लेकिन आप खुद को और अपने दिल को कितना समझते हैं, इसका रास्ता आपको खुद ही निकालना होता है।

कॉम्पिटिशन के इस दौर में चीजें तेजी से भाग रही हैं, लेकिन युवा ठहरे हुए हैं। घंटों कुर्सी पर बैठे काम करना हो या मार्केटिंग के लिए दिनरात भटकना हो, लग्जरी लाइफस्टाइल के चक्कर में लाखों रुपए के लोन का बोझ सिर पर ढोना हो या फिर दुनिया क्या कहेगी के फेर में फंसना हो, इन सब के बीच यदि युवा पीढ़ी खुद से खुद को डिसिप्लिन रखने का फैसला करती है तो निश्चित ही तमाम उलझनों और तनाव के बाद भी दिल को मजबूत रख सकता है। डिसिप्लिन से अर्थ खुद से किए गए कुछ नेक वादे हैं, जो आपको सूरज के उगने से पहले उठने और सूरज की तरह चमकने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। जाहिर तौर पर खान-पान और व्यायाम में अनुशासन आपको मानसिक रूप से विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति देगा। अंत में बस इतना ही कह सकता हूं कि जिसे तूफान से उलझने की हो आदत मोहसिन, ऐसी कश्ती को समंदर भी दुआ देता है।

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गरीब और पिछड़े वर्गों के हितों का ध्यान रखें https://eventreview.in/take-care-of-the-interests-of-the-poor-and-backward-classes/ https://eventreview.in/take-care-of-the-interests-of-the-poor-and-backward-classes/#respond Wed, 24 Apr 2024 04:32:36 +0000 https://eventreview.in/?p=8786 कार्यस्थल पर कोई भी निर्णय लेते समय देश के गरीब और पिछड़े वर्गों के हितों का ध्यान रखें। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारतीय आर्थिक सेवा (आईईएस) के अधिकारियों के समूह से मुलाकात के दौरान कहा। आर्थिक संकेतक प्रगति के उपयोगी मापदंड माने जाते हैं, इसलिए सरकारी नीतियों को प्रभावी और उपयोगी बनाने में अर्थशास्त्रियों की भूमिका को उन्होंने बहुत उपयोगी बताया।

राष्ट्रपति ने अधिकारियों से कहा, भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है, ऐसे में उन्हें आने वाले समय में अपनी क्षमताओं को पूरी तरह विकसित कर उनका उपयोग करने के असंख्य अवसर मिलेंगे। कार्यस्थल पर नीतिगत सुझाव देते समय या निर्णय लेते हुए देश के गरीब और पिछड़े वर्गों के हितों का ध्यान रखें। आर्थिक विश्लेषण और विकास कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करने के साथ ही संसाधन वितरण प्रणाली और योजनाओं के मूल्यांकन के लिए उचित सलाह प्रदान करने की बात भी उन्होंने की।

2022-2023 के बैच के आईईएस अधिकारियों में 60त्न महिलाओं के होने की बात की और इससे महिलाओं के सर्वागीण विकास के लिए काम करने का आग्रह भी किया। ऐसे दौर में जब आर्थिक विसंगतियां बढ़ती जा रही हैं, राष्ट्रपति द्वारा अधिकारियों को यह सलाह देना देशवासियों के प्रति उनके मानवतावादी रवैये का द्योतक है। गरीबों और जरूरतमंदों के लिए बनाई गई सरकारी नीतियां जब तक प्रभावी नहीं होंगी, तब तक उनका लाभ लक्षित वर्ग तक पहुंचना मुश्किल है।

देखने में आता है कि सरकारें योजनाएं बना कर उन्हें बिसरा देती हैं। उच्चाधिकारियों के हाथ में है कि वे इनका क्रियान्वयन सुबीते से करें। नि:संदेह इस तरह की नौकरियों में देश के हर वर्ग और हर प्रांत के अधिकारियों का चयन होता है, इसलिए उन्हें बुनियादी समस्याओं और संकटों का भान होता है। स्वयं राष्ट्रपति ऐसे समुदाय और वर्ग से निकल कर सबसे बड़े पद तक पहुंची हैं कि उन्हें देशवासियों की समस्याओं का न केवल अहसास है, बल्कि गरीबों और  महिलाओं के समक्ष आने वाली चुनौतियों को भी उन्होंने करीब से देखा है।
किसी भी समाज की प्रगति तभी नजर आती है, जब उसका सर्वागीण विकास हो रहा हो। कहना न होगा कि आर्थिक असंतुलन ने हमारे संकटों को बढ़ाया है। यह चुनौती है, जिससे निपटना बेहद जरूरी है।

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