मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने डेंगू के खिलाफ अभियान चलाते हुए हर रविवार 15 मिनट डेंगू पर व वार मुहिम चलाई थी।
उन्होंने कहा था कि कोविड-19 के साथ हमें डेंगू को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
इसलिए हर रविवार को सुबह 9:00 बजे से मात्र 15 मिनट डेंगू पर वार करें।
अपने घरों में और घरों के आसपास साफ पानी को बिल्कुल इकट्ठा न होने दें।
क्योंकि डेंगू का मच्छर साफ पानी में ही पनपता है।
आज रविवार 19 जुलाई 2020 को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने
इस मुहिम पर कार्य करते हुए सीएम आवास और आवासीय कार्यालय परिसर का निरीक्षण किया।
उन्होंने गमलों नालियों आदि को चेक किया कि कहीं पानी तो इकट्ठा नहीं हो रहा।
जिन गमलों में पानी था, उन्हें खाली किया।
मुख्यमंत्री ने पानी की टंकियों की भी जांच की, कि कहीं डेंगू के मच्छर के लार्वा तो नहीं पनप रहे हैं।
यही आह्वान मुख्यमंत्री ने संपूर्ण उत्तराखंड की जनता से किया था।
परंतु इस आह्वान का असर कितना हुआ, इसकी बानगी ऐसे देखने को मिलती है कि
जिन लोगों को इसकी कमान संभालनी थी वही इस मुहिम से पल्ला झाड़ कर बैठ गए।
देहरादून नगर निगम के मेयर सुनील उनियाल गामा ने मुख्यमंत्री की पोस्ट शेयर करके अपनी जिम्मेदारी से इतिश्री कर ली।
लेकिन खुद का किया हुआ काम अपलोड करना भूल गए।
जबकि इनकी आदत है कि कोई छोटा कार्य भी हो तो फेसबुक के माध्यम से जनता को तुरंत सूचित करते हैं।
या तो उन्होंने यह कार्य ही नहीं किया, या मुख्यमंत्री की आह्वान को अपना कर्तव्य न समझते हुए नगर निगम के कर्मचारियों का कर्तव्य समझ लिया।
संभवत यह लोग जनप्रतिनिधि की भावना से ऊपर उठकर अब जननायक की भावना प्राप्त कर चुके हैं कि जनता कार्य करेगी और हम अपनी नरम गुदगुदी कुर्सी पर बैठकर इसका अवलोकन करेंगे।
यदि जनप्रतिनिधि इस प्रकार व्यवहार करेंगे तो आम जनता ऐसे आह्वान को कितनी गंभीरता से लेगी ? यह विचारणीय है।
यह तो केवल दो उदाहरण हैं, जो इस मुहिम से सीधे संबंधित हैं, क्योंकि क्षेत्र की सफाई का कार्यभार लोकल सेल्फ एडमिनिस्ट्रेशन की ही जिम्मेदारी होती है ।
अन्य मंत्री, नेता, पदाधिकारी, और प्रशासनिक अधिकारी इस मुहिम पर उदासीन ही रहे।
इसी तरह भाजपा के अन्य नेता, पदाधिकारी, कार्यकर्ता, प्रशासनिक अधिकारी इत्यादि
जो छोटे से छोटे कार्य के लिए फेसबुक पर जुड़े रहते हैं और
मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री इत्यादि को टैग करके अपने कार्यों से अवगत कराते हैं ने इस मुहिम को गंभीरता से नहीं लिया।
कुछ ने मुख्यमंत्री की पोस्ट शेयर कर के अपने कर्त्तव्य से इतिश्री प्राप्त की तो कुछ ने हैशटैग पोस्ट लगा दी।
फिर भी इनकी संख्या बहुत कम ही रही। और खुद अपने हाथ से काम करते लोग तो उँगलियों पर गिने जा सकते हैं।
जनता जनप्रतिनिधियों को देख कर ही कार्य करती है।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड-19 से लड़ने के लिए रात 8:00 बजे दिए जलाने या टॉर्च जलाने की मुहिम चलाई थी तो इन सब ने आगे बढ़ चढ़ कर अपने फोटो वीडियो अपलोड और शेयर किए थे।
परंतु यह कार्य जिससे वास्तव में कुछ लाभ हो सकता है, पर इन सभी ने कोई संज्ञान नहीं लिया।
और जनता तक सकारात्मक संदेश पहुंचाना अपना कर्तव्य नहीं समझा।
अब दोबारा यह मुहिम 1 सप्ताह बाद ही होगी तब तक जनता को इनके कार्यशील होने का इंतजार करना होगा।
इवेंट रिव्यू ने जब फेसबुक और ट्विटर को खंगाला तो यह पाया कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के अलावा भाजपा प्रदेश प्रवक्ता विपिन कैंथोला ने इस मुहिम के लिए जागरूकता का प्रसार किया था।
विपिन कैंथोला की फेसबुक पोस्ट
वहीँ हरिद्वार जिला पंचायत अध्यक्ष सुभाष वर्मा ने भी वीडियो के माध्यम से जागरूकता का प्रसार किया।
सुभाष वर्मा की फेसबुक पोस्ट
संभव है कि कुछ और पदाधिकारियों और अधिकारियों ने भी यह कार्य किया हो जहां तक हम नहीं पहुंच पाए लेकिन यह संख्या निश्चित ही आटे में नमक के समान होगी।
क्योंकि भाजपा के बड़े चेहरे तो इस मुहिम से दूर ही दिखाई दिए।
मुख्यमंत्री द्वारा चलाया गया हैशटैग पूरी तरह विफल रहा।
अब सवाल यह उठता है कि क्या मुख्यमंत्री की मेहनत से चलाये गए अभियान को उन्ही के सेना नायक गंभीरता से नहीं लेते हैं ?