ब्लॉग

बलात्कार के दोषी को फांसी की सजा

विजय तिवारी
आजकल एक हवा चली है कि कोई भी आपराधिक घटना हो जाए और मामला किसी पार्टी या संगठन से जुड़े व्यक्ति का हो तो तुरंत ही चक्काजाम या थाने का घेराव होना लाज़मी है ! और मामला बलात्कार का हो या लडक़ी को अगवा करने का हो तब तो फौरी इंसाफ की बात होती है। मामला यह हो जाता है कि आरोपी को भीड़ अपराधी घोषित कर देती है। भले ही कोई सबूत हो या ना हो !

इसमें राजनेताओं और राजनीतिक पार्टियों की भी भूमिका कम नहीं, वे भी आग में घी डालने का काम करते हैं, बशर्ते सरकार उनके विरोधी की हो। जैसा कि बंगाल के कलकत्ता में हुआ। हालत इतने उलझ गए कि बंगाल की विधानसभा में ममता सरकार ने एक कानून ही पारित कर दिया कि बलात्कार के दोषी को फांसी की सजा दी जाए। अब सरकार में विधि सचिव की बुद्धि और ज्ञान सब कुछ मंत्री के आदेश के सामने लाचार हो गए।

दिल्ली में हुए निर्भया कांड में भी जनता ने (राजनीतिक दलों नहीं लेने दिया गया था) ऐसी ही मांग रखी थी। केंद्र ने भी जनता की मांग पर सुप्रीम कोर्ट के सेवा निव्रत प्रधान न्यायाधीश वर्मा की अध्यक्षता मे एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था। उन्होंने अपनी सम्मति में लिखा था कि आरोपी के लिए निर्धारित प्रक्रिया से ही अपराधी घोषित किया जा सकता है, तब ही उसे सजा दी जा सकती है। निर्भय कांड मे दोषियों को सजा “फांसी” सालों बाद दी जा सकी। लिखने का तात्पर्य यह है कि दोषियों की गिरफ्तारी और जल्दी सुनवाई की मांग तो की जा सकती है और उसे सरकार पूरा भी कर सकती है, पर सरकार किसी भी कानून द्वारा आरोपी को सजा नहीं दे सकती।

अब यह स्थिति सभी राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को मालूम भी होती है, परंतु राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए वे अपने भाषणों में आरोपियों को तुरंत लटकाये जाने की मांग करते रहते हैं। अब ऐसे नेताओं से कौन पूछे कि किस विधि से आंदोलनकारियों की मांग को तुरंत पूरा किया जा सकता है ? वे कभी भी इस सवाल का जवाब नहीं दे पाएंगे। क्यूंकि भारत में न्याय की एक प्रक्रिया है जो सभी देश के नागरिकों पर लागू होती है। अदालत के 4 चरण होते है, पहला मजिस्टरेयत फिर सेशन कोर्ट तब हाई कोर्ट और अंत में सुप्रीम कोर्ट। सेशन कोर्ट दोषों को फांसी की सजा सुना तो सकता है परंतु उस पर मुहर हाई कोर्ट को लगाना जरूरी है।

अर्थात हाई कोर्ट तक मामले की सुनवाई तो होगी ही। अब आंदोलनकारियों की मांग को पूरा करने के लिए इन अदालतों को सभी काम छोडक़र उस एक मामले की सुनवाई के लिए तैयार बैठे ! ऐसा हो नहीं सकता क्यूंकि यह संभव ही नहीं असंभव ही है। तब बार क्यू दोषी को तुरंत फांसी देने का आश्वासन और कानून ? सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ओक ने अभी अपने एक भाषण में कहा भी है कि भीड को तुरंत न्याय देने के बयॠान बिल्कुल गलत है। यह न्याय प्रक्रिया को चोट पँहुचाते हैं। तो यह है सुप्रीम कोर्ट की रॉय।

हाँ हरियाणा में पाँच युवकों ने जिन्हे गौ रक्षक बताया जा रहा है उन्होंने एक कार में सवार परिवार पर इसलिए गोलियां बरसा कर एक युवक की हत्या कर दी, क्यूंकि उनके अनुसार उन्हें सूचना मिली थी कि कर में गौ तस्कर घूम रहे हैं। इसलिए उन्होंने कार का पीछा कर के चलती कार पर गोली वर्षा कर दी ! अब दो सवाल है कि यह गौ तस्कर क्या होते हैं ? दूसरे गए की तस्करी किस प्रकार की जा सकती है ? हरियाणा की हिंदुवादी सरकार का रिकार्ड काफी खराब रहा है, गाय के परिवहन को गाय की तस्करी बता कर मुस्लिम लोगों को मारने -पीटने और यंहां तक कि उनकी हत्या करने का भी मामला चल चुका है।

जब राजस्थान के चार मुस्लिम ग्वालों को पीट -पीट कर मारने का। अदालत में इस मुकदमे में हरियाणा सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। यंहा सवाल यह है कि पुलिस को तो पूछने का जांच करने का अधिकार है पर इन गौ भक्तों को किसी की तलाशी लेने या पूछने का अधिकार कहां से मिल गया। जरूर ही सरकार की शह पर पुलिस को पंगु बना कर विधि के राज को असफल करने का मामला हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *