सामाजिक कार्यकर्ता वी०पी०भट्ट ‘सलाणी’ ने सरकार पर कड़े आरोप लगाए हैं। वी०पी०भट्ट ‘सलाणी’ गढ़ सलाण समिति, दिल्ली के अध्यक्ष हैं।
उन्होंने कहा कि
वैश्विक कोरोना महामारी संक्रमण के विकराल रूप को देखते हुए उत्तराखण्ड में चारधाम यात्रा व्यवस्था को सम्भालने वाले स्थानीय पंडे-पुजारी और अन्य कामकाज से सम्बन्धित व्यवस्थापकों और हजारों यात्रियों के पुरजोर विरोध के बावजूद उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत चारधाम यात्रा को खोलने पर इतना जोर क्यों दे रहे हैं ?
आज इस आफ़त के समय उत्तराखण्ड में हर तरफ़ से हालात अस्त-व्यस्त हैं, और मुख्यमंत्री ने यह कह कर एक नये विवाद को जन्म दे दिया है कि
“चार धाम यात्रा का विरोध करने वाले कांग्रेस पार्टी के लोग हैं, मैं उनके नाम और शक्ल 20 साल से जानता हूं” जबकि इस समय हर साल जुलाई-अगस्त में यात्रा रुक सी जाती है क्योंकि मानसूनी बरसात में भूस्खलन से पहाड़ों में दुर्घटनाओं का खतरा पूरी यात्रा मार्ग पर बना हुआ रहता है, और कोरोना संक्रमण का खतरा चरम पर है तो, ऐसे आपातकालीन स्थिति में आखिर मुख्यमंत्री और उत्तराखण्ड शासन प्रशासन का चार धाम यात्रा खोलने का क्या कोई खास स्वार्थ है ?
पहले ही इनसे मौजूद समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है, सवाल उठाने वाले और निष्पक्ष पत्रकारिता करने वालों को तड़ीपार घोषित किया जा रहा है। कुछ पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं, जनहित के मुद्दे उठाने पर मीडिया संस्थानों को धमकियां दी जा रही हैं। पर्वतजन मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार और सरकार से प्रदेशवासियों के हित में सवाल उठाने वाले शिवप्रसाद सेमवाल महीने भर से लापता हैं, कहां हैं, किस हाल में हैं, पता नहीं, शायद सरकार जानती होगी, त्रिवेन्द्र सरकार पहले भी पत्रकार सेमवाल को कई झूठे आरोपों में लपेट चुकी है, बिना सबूत जेल में रख चुकी है।
पर्वतजन वेव मीडिया के निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले सुभाष नौटियाल आदि पत्रकारों और कर्मचारियों पर त्रिवेन्द्र सरकार की ज्यादितियों से वे आज बहुत कष्ट में जी रहे हैं, उनके पास खाने, रहने और मकान मालिकों का किराया देने तक के पैसे नहीं हैं ।
आज प्रदेश के जरूरतमंदों को मनरेगा में काम पूरा नहीं मिल रहा है, जितना काम किया उसका पैसा नहीं मिल रहा है, प्रवासी कामगारों को राशनकिट उपलब्ध नहीं हुए हैं, अस्पतालों में PPE किट उपलब्ध नहीं हैं, कोरोना टेस्ट का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है ।
उत्तराखण्ड में कोरोना के बढ़ते संकट को देखते हुए ही सरकार ने सोमावती अमावस्या के गंगास्नान पर प्रतिबन्ध लगाया गया और नीलकंठ महादेव की यात्रा बिना जनहित देखे ही बन्द कर दी गई है, लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत चारधाम यात्रा खोलने की ज़िद अड़ाये बैठे हैं,
जबकि नीलकंठ सावन यात्रा से जुड़े हजारों घरों के चूल्हे बन्द हो चुके हैं, मैक्स-जीप वाले, पंडे-पुजारी, चालक-परिचालक, छोट-मोटे दुकानदार, फूल-प्रसाद वाले आदि इस यात्रा से भरण-पोषण करने वाले हज़ारों कामगारों के बारे में कोई राहत का ऐलान नहीं किया गया,
हालांकि उसी नीलकंठ क्षेत्र की हिंवल नदी मेंं बैरागढ़-मोहनचट्टी क्षेत्र में 30 जून की समाप्ति के बाद अब भी अवैध खनन उद्योग चरम पर है, नदी में अवैध खनन करके लगाये गये 30-40 फुट ऊंचे बांध रूपी टीलों से होने वाली आपदा से कई गांवों के डूबने और बहने का खतरा सिर पर है,
हजारों क्षेत्रवासियों की जिंदगी प्रभावित हो सकती है, लेकिन… मुख्यमंत्री साहब का हवा हवाई गोदी मीडिया, व्हाट्सएप आदि सभी सोशल मीडिया प्रचार प्रसार में सब चंगा दिखाया जा रहा है।
उत्तराखण्ड में कोरोना संक्रमण के बचाव में इतनी बुरी व्यवस्था होने के बावजूद उत्तराखण्ड देवस्थानम् बोर्ड की वेबसाइट पर दूसरे राज्यों से आने वाले यात्रियों के लिए चारधाम यात्रा का पंजीकरण हो रहा है, क्या इससे संक्रमण का खतरा और ज्यादा नहीं बढ़ेगा ? और यदि चारधाम यात्रा के व्यवस्थापक अपना नुकसान सहते हुए भी चारधाम यात्रा संचालित नहीं करने के लिए निवेदन कर रहे हैं तो वे कांग्रेसी हो गये ! वाह रे मुख्यमंत्री.. वाह ! जो तुम बोलो वहीं सही है क्या ?
यदि उत्तराखण्ड मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत जी आप पर हिम्मत है तो पहले सरकारी खर्चे पर उत्तराखण्ड में प्रत्येक व्यक्ति का पचास लाख रुपए का बीमा करवा दीजिए, चारधाम यात्रा से कोरोनावायरस बुलाने की इतनी ज़िद है तो घोषणा कीजिए,या फिर नीलकंठ सावन यात्रा की तरह उत्तराखण्ड की सभी धार्मिक यात्राओं पर पूर्णतः प्रतिबन्ध की जायें। आज विपक्ष तो मर चुका है, शून्य है, जनहित में उन राजनीति करने वालों को अपने ज़मीर को जगाने की आवश्यकता है, प्रदेशहित में सभी पढ़े लिखे युवाओं, बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले चौथे स्तम्भ को जोर-शोर से आवाज उठाने की आवश्यकता है।