प्रेरणा : सरकारी दफ्तरों से अपना काम निकालने के लिए की जाने वाली दौड़ भाग से हम सब वाकिफ हैं,
और इंसान जितना गरीब होता जाता है उसकी दौड़ धूप उतनी बढ़ती जाती है।
लेकिन कई बार कुछ बातें जेहन में ऐसी छप जाती हैं, जो वक्त और हालात दोनों को बदल देती हैं।
ऐसी ही एक मिसाल हैं रोहिणी भाजीभाकरे जो अपने पिता को सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते देख दुखी हुई, तो खुद आईएएस अधिकारी बनकर एक नजीर पेश कर दी।
रोहिणी के पिता पेशे से किसान हैं, और सरकारी विद्यालय से पढ़ी रोहिणी ने अपने दम पर इंजीनियरिंग की डिग्री ली और यूपीएससी की तैयारी कर आईएएस बन गईं।
रोहिणी ने इसके लिए किसी भी निजी कोचिंग की सहायता नहीं ली थी।
रोहिणी जब छोटी थी तो सरकार किसानों के लिए कुछ योजनाएं लाई थी और वह योजनाएं पाने के लिए उनके किसान पिता को दफ्तरों में काफी चक्कर लगाने पड़ रहे थे।
रोहिणी ने जब अपने पिता से पूछा कि आप क्यों परेशान हैं और आपकी परेशानी कौन खत्म कर सकता है, तो रोहिणी के पिता ने कहा ‘जिला कलेक्टर’।
इसी समय रोहिणी ने संकल्प लिया कि जिस अफसर का हस्ताक्षर लेने के लिए उनके पिता को चक्कर लगाने पड़ रहे हैं वो वही अफ़सर बनेंगी।
रोहिणी के पिता ने उन्हें कहा कि अगर तुम कलेक्टर बन जाओ तो जनता की सेवा करना।
रोहिणी अपने जिले की पहली महिला आईएएस अधिकारी बनी और तमिलनाडु कैडर में कार्य करते हुए अपनी शानदार प्रशासनिक क्षमता के साथ साथ सामाजिक योजनाओं में बेहतरीन तरीके से कार्य कर रही हैं।
अब वह तमिल भी बोलने लगी हैं और वर्तमान में महिला सशक्तिकरण के लिए कार्य कर रही हैं।
रोहिणी का संघर्ष हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो सफलता न मिलने के पीछे संसाधनों को दोष देता है