उत्तराखंड सरकार ने हर की पैड़ी से हो कर बहने वाली गंगा की धारा को देव धारा घोषित करने का निर्णय ले लिया है । इसके लिए सुबूत भी जुटाए गए हैं ।
भाजपा इसपर इतना मन बना चुकी है कि सुप्रीम कोर्ट तक जाने और अध्यादेश लाने तक को तैयार है ।
दरअसल 2016 में हरीश रावत सरकार हर की पैड़ी से बहने वाली धारा को नहर ( स्केप चैनल ) घोषित कर दिया था ।
तब अखाड़ा परिषद और अन्य संतों ने इसका विरोध किया था ।
तब से ये मामला दबा हुआ था ।
ये मामला दोबारा भी हरीश रावत ने ही ताज़ा किया जब उन्होंने संतों से अपने निर्णय के लिए क्षमा मांगी । और कहा कि सरकार चाहे तो ये फैसला पलट दे ।
हरीश रावत के इस बयान पर खूब राजनीति हुई।
आरोप प्रत्यारोप लगाए गए और अंततः भाजपा सरकार ने इस फैसले को पलटने का मन बना लिया।
शुक्रवार को संसदीय कार्यमंत्री मदन कौशिक की अध्यक्षता में विधानसभा में हुई बैठक में तय किया गया
कि 2016 का शासनादेश पलटा जाएगा।
सचिव सिंचाई, आवास, सचिव विधायी आदि से बैठक करने के बाद मंत्री मदन कौशिक ने बताया कि
यह भी सामने आया है कि 1916 में मदन मोहन मालवीय और गंगा सभा हरिद्वार के बीच हुए समझौते में भी हर की पैड़ी से होकर बहने वाली धारा को गंगा ही कहा गया है।
संबंधित कानूनों में संशोधन किया जाएगा या फिर अध्यादेश लाया जाएगा
कौशिक ने कहा कि कानूनी समस्या का समाधान करने के लिए अगर जरूरत पड़ेगी तो संबंधित कानूनों में संशोधन किया जाएगा या फिर अध्यादेश लाया जाएगा। सरकार हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए भी तैयार है।
लेकिन इस मामले में एक पेंच भी है ।
हर की पैड़ी से होकर बह रही गंगा के किनारे होटल, आश्रम आदि का सघन निर्माण का भी है।
एनजीटी का साफ आदेश था कि गंगा के किनारों के 200 मीटर के दायरे में निर्माण को हटाया जाए। हरीश रावत की सरकार ने इस निर्माण को बचाने के लिए ही गंगा की धारा को नहर घोषित किया था।
अब यह निर्णय ले कर भाजपा सरकार संतों और आस्थावान जनता को प्रसन्न करेगी, या हर की पैड़ी के पास घने बसे निर्माण पर निर्भर लोगों को, यह तो समय ही बताएगा ।
लेकिन इस बात की पूरी संभावना है, कि मंझे हुए नेता हरीश रावत ने सरकार के सामने यह कठिन गुगली फेंक दी है ।