– शेफ देवाशीष पांडेय
खाना बनाना और उसके तरीके हमेशा से ही लोगों के बीच चर्चा का विषय बने रहते हैं।
लोगों का खाने की ओर प्यार और लगाव उन्हें और जिज्ञासु बनाता है।
आजकल खाना बनाने के बहुत सारे तरीके लोगों को पता हैं
और साथ ही नई तकनीक के साथ नए नए खाना बनाने के बर्तनों को दुकानों में देखा जा सकता है।
ये खाना बनाने को और आसान और मजेदार बना देते हैं ।
आपके खाने को ये बर्तन जलने से बचाते हैं और साथ ही आपका समय भी बचाते हैं ।
जो बर्तन आजकल के दौर में इस्तेमाल में लिए जाते हैं वो मानव के अनुकूल हैं
और साथ ही खाने की सुरक्षा के लिए भी कारगर साबित होते हैं ।
पर परंपरागत तरीके से खाना बनाने की बात करें तो लोहे की कढ़ाही एक विशेष स्थान रखती है।
पहले लोहे और तांबे के बर्तन का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता था।
इस तरह के बर्तन खाना बनाने के लिए अनुकूल इसलिए होते हैं
क्यूंकि ये गर्माहट ज्यादा सह सकते हैं और साथ ही
लंबे टाइम तक आप इनमें खाना बना सकते हैं जिसे आज स्लो कुकिंग भी कहते हैं ।
पहले के समय में चूल्हे का प्रयोग होता था जिसे लकड़ी, कोयला या फिर उपले से जलाया जाता था ।
इस तरह के चूल्हे में जहां लकड़ी इस्तेमाल में लाई जाती थी उसमें बने खाने का स्वाद कुछ और ही होता था ।
इस चूल्हे की गर्मी को झेलने के लिए और इनमें खाना बनाने के लिए मोटी सतह वाले बर्तनों का प्रयोग होता था।
पहली पसंद लोहे के बर्तन की होती थी क्यूंकि इसे इस्तेमाल में लाना आसान था और साथ में इस बर्तन में सब्जियां,मीट और कई तरह के व्यंजनों को आसानी से बनाया जा सकता था
जो कि आज के समय में भी कई घरों में और खान पान वाली जगह पर होता है।
बहुत लोगों का यह मानना है कि जो खाना लोहे के कढ़ाही या बर्तन में बना हो उस खाने में आयरन की मात्रा बढ़ जाती है
जो किसी और बर्तन में बनाने से संभव नहीं है।
जब आयरन खाने में घुल जाता है तब वह खाने के जायके को दुगुना कर देता है।
लोहे के बर्तनों को आराम से धोया जा सकता है और अगर इनका ठीक से ध्यान दिया जाए तो ये बर्तन सालों साल चलते हैं।