देहरादून। उत्तराखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने देश का एक आम नागरिक होने के नाते
प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखते हुए कहा कि मैं इस संकट काल में आपको कष्ट नहीं देना चाहता था।
लॉक डाउन की आपकी घोषणा के बाद जिस तरह की स्थितियाँ बनीं, सड़कों पर गरीब, मज़दूर और
आमजन की जो दुर्गति हुई।
घरों में जिस तरह लोग क़ैद हुये।आज भी असमंजस, भय और भविष्य के प्रति आम जन के मन में जो
संशय बना है,आपने भी अपने जीवनकाल में कभी न देखा होगा।चीन और पाकिस्तान के साथ हुये युद्धों में
भी इस तरह के भय और आशंका का वातावरण नहीं बना था।
गरीब, मज़दूर जहाँ एक ओर अत्यधिक निराश हुआ, निम्न मध्यम वर्ग भी कम निराश व आतंकित नहीं
हुआ है, वह तो लाचारी में किसी को कुछ बोल भी नहीं सकता है।
मध्यम व उच्च मध्यम वर्ग भी इन दिनों कोई आनन्द में नहीं है, उसको अपने भविष्य की अनिश्चितता की
अनेकानेक शंकायें हैं और धनी वर्ग को किसी तरह का फ़र्क़ ही नहीं पड़ता है।
मेरे प्रदेश का स्वभाव सदैव राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत रहा है, हमेशा वसुधैव कुटुम्बकं वाला रहा है और
हिमालय की जवानी और पानी पलायन के लिये शापित है।
आपने भी अनुभव किया होगा कि हमेशा ही देश की सीमा के लिये रक्त की पहली बूँद अधिकतर
उत्तराखंडी की होती है।
गुजरात से ज़्यादा लोग व्यावसायिक बुद्धिसंपन्न हैं और इसमें कोई बुराई भी नहीं है, इसलिये वहाँ से
सेनाओं में कम ही लोग हैं, इसलिये शहादतें भी नगण्य सी हैं।
कोरोना के इस प्रलयकाल में अगर सबसे अधिक चोट “भारतीयता” और “देशभक्ति” को पहुँची है।
जिस तरह उत्तराखंड के लोग देश में जगह-जगह परेशान हुये और लगभग उसी तरह की स्थिति हर
भारतवासी की हुई।
बिहार, उड़ीसा और अन्य प्रदेशों के भारतीय जिस तरह से अपनी जन्मभूमि की तरफ पैदल ही चल पड़े,
भूखे और प्यासे, छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लेकर, सरदार पटेल, महात्मा गाँधी, भगत सिंह, चन्द्रशेखर
आज़ाद प्रभृति मनीषियों ने ऐसे देश की कल्पना तो नहीं ही की होगी?
अब हम भारतीय कहाँ रह गये हैं, अब तो हम बिहारी, पुरबिये, बंगाली, मद्रासी, गुजराती, पंजाबी, पहाड़ी,
उत्तराखंडी आदि-आदि हो गये हैं।
यदि हम भारतीय होते तो राजस्थान में रह रहे बिहारी की रक्षा राजस्थानी करता, देहरादून में रहने वाले
उत्तर प्रदेश के रहने वाले की रक्षा उत्तराखंडी करता, सूरत में रहने वाले उत्तराखंडी की रक्षा गुजराती करता।
इसमें तो सबसे ज़्यादा निराश मज़दूरों के मामले में उनके मालिकों ने किया है, वे अपने मज़दूरों को हफ़्ते
दस दिन रोटी भी न खिला सके।
किशोर ने कहा कि आपके सामने मैं अदना सा इंसान हूँ।
यह धृष्टता भी इसलिये कर रहा हूँ कि आपने कई बार उत्तराखंड के साथ अपने आत्मीय सम्बन्धों की बात
की, माँ गंगा की बात की, अपने आध्यात्मिक मार्ग दर्शक दिव्य विभूति ब्रह्मलीन दयानन्द जी की बात की
(जिनसे मेरा भी सम्पर्क रहा) और यहाँ की गयी तप-तपस्या की बात की।
मैंने पूर्व में हिमालय और गंगा के बारे में आपको पत्र लिखे, लेकिन जवाब किसी भी पत्र का नहीं आया।
तब भी जब में यहाँ एक राष्ट्रीय दल का प्रदेश मुखिया था।
अब भी मैं यह आशा नहीं कर रहा हूँ कि आप इस चिट्ठी का जवाब देंगे।आपकी व्यस्तता और आपके
समक्ष खड़ी चुनौतियों को मैं समझता हूँ,
क्योंकि एक अदने से कार्यकर्त्ता के रूप में मैंने भी वहाँ सेवा की है।
लोगों के मन में भारतीयता की भावना का ह्रास मेरी चिंता है।
संकट के समय भारत के जन मानस ने सदैव राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र भक्ति को सर्वोच्च रक्ख़ा है।
अटल बिहारी जी ने भारत-पाक युद्ध पर इन्दिरा जी को क्या कहा था, आपसे अधिक कोई नहीं जानता
आज तो मनुष्य योनि ही ख़तरे में है।जब आपने मानवता ही ख़तरे की बात की तो, मुझे अच्छा लगा था।
मैं भारत का नागरिक होने के नाते इस चिट्ठी को देश के सभी मुख्यमंत्रियों और अन्य बड़े लोगों को भी
भेजूँगा, जिसमें उद्योग, बुद्धिजीवी, सामाजिक क्षेत्र के गणमान्य लोग होंगे।
आप हमारा और देश का नेतृत्व कर रहे हैं, यह केदारनाथ जी की कृपा है।
अब लोगों में भारतीयता की भावना पुन: कैसे बलवती हो?
मुझे पूरा विश्वास है, आप मनन और चिन्तन करेंगे।