एयर क्वािलटी लाइफ इंडेक्स के अनुसार देहरादून, हरिद्वार और उधमिसंह नगर के लोग क्रमशः 4.1 वर्ष, 6.6 वर्ष और 6.1 वर्ष ज्यादा सकते थे जी
अगर वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देश के होती अनुरूप
देहरादून। शिकागो विश्वविद्यालय, अमेरिका की शोध संस्था ‘एपिक’ (Energy Policy Institute at the University of Chicago-EPIC) द्वारा तैयार ‘वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक’ (Air Quality Life Index – AQLI) का नया विश्लेषण दशार्ता हैकि उत्तराखंड में वायु प्रदूषण की गंभीर स्तिथि उत्तराखंड के नागिरकों की ‘जीवन प्रत्याशा’ औसतन 4.2 वर्ष कम करती है, और जीवन प्रत्याशा में उम्र बढ़ सकती है अगर यहां के वायुमंडल में प्रदूिषत सूक्ष्म तत्वों एवं धूलकणों की सघनता 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूिबक मीटर (विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बताया गया सुरिक्षत मानक) के सापेक्ष हो।
एक्यूएलआई के आंकड़ों के अनुसार देहरादून के लोग 4.1 वर्ष ज्यादा जी सकते थे, अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देश प् पालन कर लिया जाता। वर्ष 1998 में, इसी वायु गुणवत्ता मानक को पूरा करने से जीवन प्रत्याशा में 1.9 साल की बढ़ोतरी होती। लेकिन राज्य में देहरादून प्रदूषित ज़िलों की सूची में शीर्ष पर नहीं है।
उत्तराखंड के अन्य ज़िलों और शहर के लोगों का जीवनकाल घट रहा है और वे बीमार जीवन जी रहे हैं। उदाहरण के लिए हरिद्वार के लोगों के जीवनकाल में 6.6 साल की बढ़ोतरी होती, अगर वहां विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों का अनुपालन किया जाता। इसी तरह उधमिसंह नगर, नैनीताल, पौड़ी गढ़वाल, चंपावत और अल्मोड़ा भी इस सूची में पीछे नहीं हैं, जहां के लोगों की जीवन प्रत्याशा में क्रमशः 6.1 वर्ष, 4.2 वर्ष, 3.2 वर्ष, 2.3 वर्ष और 2.1 वर्ष की वृद्धि होती, अगर लोग स्वच्छ और सुरिक्षत हवा में सांस लेते।
दरअसल वायु प्रदूषण पूरे भारत में एक बड़ी चुनौती है, लेकिन उत्तरी भारत के गंगा के मैदानी इलाके (Indo-Gangetic Plain), जहां बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली और पिश्चम बंगाल जैसे प्रमुख राज्य और केंद्र शािसत प्रदेश आते हैं, में यह स्पष्ट रूप से अलग दिखताहै। वर्ष 1998 में गंगा के मैदानी इलाकों से बाहर के राज्यों में निवास कर रहे लोगों ने उत्तरी भारत के लोगों के मुकाबले अपने जीवनकाल में करीब 1.2 वर्ष की कमी देखी होती, अगर वायु की गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक को अनुरूप हुई होती।
अब यह आंकड़ा बढ़ कर 2.6 वर्ष हो चुका है, और इसमें गिरावट आ रही है, लेिकन गंगा के मैदानी इलाकों की वतर्मान स्तिथि के मुकाबले यह थोड़ी ठीकठाक है। एक्यूएलआई के अनुसार भारत के उत्तरी क्षेत्र यानी गंगा के मैदानी इलाके में रह रहे लोगों की जीवन प्रत्याशा करीब 7 वर्ष कम होने की आशंका है, क्योंकि इन इलाकों के वायुमंडल में ‘प्रदूिषत सूक्ष्म तत्वों और धूलकणों से होने वाला वायु प्रदूषण’ यानी पािटर्कुलेट पॉल्यूशन (Particulate Pollution) विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय दिशानिर्देशों को हािसल करने में विफल रहा है।
शोध अध्ययनों के अनुसार इसका कारण यह है कि वर्ष 1998 से 2016 में गंगा के मैदानी इलाके में वायु प्रदूषण 72 प्रतिशत बढ़ गया, जहां भारत की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी रहती है। वर्ष 1998 में लोगों के जीवन पर वायु प्रदूषण का प्रभाव आज के मुकाबले आधा होता और उस समय लोगों की जीवन प्रत्याशा में 3.7 वर्ष की कमी हुई होती।
इन निष्कर्ष की घोषणा ‘एयर क्वािलटी लाइफ इंडेक्स’ के मंच पर इसके हिंदी संस्करण में विमोचन करने के दौरान की गई, ताकि वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक उस ‘पािटर्कुलेट पॉल्यूशन’ पर अधिकाधिक नागिरकों और नीतिनिर्माताओं को जागरूक और सूचनासंपन्न बना सके, जो पूरी दुिनया में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है।
शिकागो विश्वश्विवद्यालय में अथर्शास्त्र के मिल्टन फ्राइडमैन प्रतिष्ठित सेवा प्रोफेसर और एनर्जी पॉलिसी इंस्टीटूट (EPIC) के निदेशक डॉ माइकल ग्रीनस्टोन ने कहा कि ‘‘एयर क्वािलटी लाइफ इंडेक्स के हिंदी संस्करण की शुरुआत के साथ, करोड़ों लोग यह जाननेसमझने में समर्थ हो पाएंगे कि कैसे पार्टिकुलेट पॉल्यूशन उनके जीवन को प्रभावित कर रहा है, और सबसे जरूरी यह बात जान पाएंगे की कैसे वायु प्रदूषण से संबंधित नीतियां जीवन प्रत्याशा को बढ़ाने में व्यापक बदलाव पैदा कर सकती है।’’ अगर भारत अपने ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कायर्क्रम’ के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल रहा और वायु प्रदूषण स्तर में करीब 25 प्रतिशत की कमी को बरकरार रखने में कामयाब रहा, तो ‘एक्यूएलआई’ यह दशार्ता है कि वायु गुणवत्ता में इस सुधार से आम भारतीयों की जीवन प्रत्याशा औसतन 1.3 वर्ष बढ़ जाएगी। वहीं उत्तरी भारत के गंगा के मैदानी इलाकों में निवास कर रहे लोगों को अपने जीवनकाल में करीब 2 वर्ष के समय का फायदा होगा।
दिल्ली में ‘एक्यूएलआई’ के हिंदी संस्करण के विमोचन के अवसर पर सांसद और ‘वैश्विक युवा नेता, विश्व आर्थिक मंच’ गौरव गोगोई ने कहा कि ‘‘अव्वल दर्जे की रिसर्च यह संकेत करती है कि वायु प्रदूषण में कमी और जीवनकाल में वृिद्ध के बीच स्पष्ट संबंध है। स्वच्छ वायु की मांग के लिए नागिरकों के बीच जागरूकता बेहद जरुरी है और एक्यूएलआई सही दिशा में एक कदम है। उन्होंने कहा कि 1981 के वायु अधिनियम (Air Act) में संशोधन के लिए संसद में एक निजी विधेयक प्रस्तािवत कर रहा हूं, जो बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण पैदा हो रहे स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभावों को रेखांकित करता है।’’
एक्यूएलआई से संबंधित स्टडी समकक्ष विशेषज्ञों के मूल्यांकन एवं अध्ययनों पर आधािरत है, जिसे प्रोफेसर माइकल ग्रीनस्टोन और सह-लेखकों एवं शोधार्थियों की टीम ने चीन के ‘यूनिक नैचुरल एक्सपेिरमेंट’ (Unique Natural Experiment) से प्रेरित होकर तैयार किया है।
इस ‘प्राकृतिक प्रयोग’ ने उन्हें वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को अन्य कारकों से अलग करने का मौका दिया, जो मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और इसी क्रम में उन्होंने भारत तथा उन देशों में यह अध्ययन किया, जहां आज प्रदूषित सूक्ष्म तत्वों और धूलकणों की सघनता सबसे ज्यादा है।
फिर उन्होंने इन अध्ययनों के परिणामों को विविध क्षेत्रों में बेहद स्थानीय स्तर पर ‘वैश्विक सूक्ष्म प्रदूषक मापदंडों’ (Global Particulate Pollution Measurement) के साथ संयुक्त रूप से जोड़ दिया। इससे उपयोगकतार्ओं को दुनिया के किसी क्षेत्र या ज़िले से संबंधित आंकड़ों पर नजर करने का अवसर मिलता है और उनके ज़िले में स्थानीय वायु प्रदूषण के स्तर से उनके जीवन प्रत्याशा पर पड़ रहे प्रभावों को समझने में मदद मिलती है।
हिंदी संस्करण की शुरुआत और अधिकाधिक वेबसाइट पर इससे जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराने से करीब पिछले साल पहले आरभं हुए ‘एक्यूएलआई’ के प्रचार-प्रसार को और भी गति एवं मजबूती मिलेगी। ‘एक्यूएलआई’ अब तीन भाषाओं- अंग्रेजी, हिंदी तथा मंडेरिन चाइनीज में उपलब्ध है और पांच भाषाओं में प्रमुख प्रदूषकों से संबंधित व्यक्तिगत विश्लेषण को उपलब्ध करा रहा है और इस सूचकांक का उद्देश्य दुनिया की अधिकाधिक आबादी को सूचना संपन्न बनाना है।
यह मिशन सफल भी हो रहा है, करीब 161 देशों के लगभग 30 हजार लोगों ने इस मंच का इस्तेमाल किया है। साथ ही साथ, एक्यूएलआई की शुरुआत के बाद करीब 300मीडिया संस्थानों, जिनकी पहुंच दुनिया भर में एक अरब से ज्यादा लोगों तक है, ने इस सूचकांक और इसके महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्रसारित किया है। ‘एक्यूएलआई’ को ‘फास्ट कंपनी’ (Fast Company) द्वारा वर्ष 2019 का ‘दुनिया बदलने वाला विचार’ (World Changing Idea) का नामकरण भी किया गया है।