जौनपुर रवांई में प्रति वर्ष आयोजित होने वाला ऐतिहासिक मौण मेला इस साल नहीं होगा।
मौण मेला समिति ने कोरोना महामारी के कारण यह फैसला लिया है।
क्योंकि मेले के आयोजन में सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों का पालन करना मुश्किल है।
अतः इस साल मेला आयोजित नहीं किया जाएगा।
मौण मेले में क्षेत्र के हजारों ग्रामीणों के साथ साथ देश-विदेश से आये लोग हिस्सा लेते हैं।
लोग मछलियों को पकड़ने के लिए नदी में उतरते हैं।
मौण मेले में हजारों लोग अपने पारंपरिक वाद्ययंत्रों और औजारों के साथ अगलाड़ नदी में मछलियां पकड़ते हैं।
यह दृश्य मनोरम होता है।
पहले अगलाड़ नदी में टिमरू के पौधे की छाल का पाउडर डाला जाता है।
इससे मछलियां कुछ देर के लिए बेहोश हो जाती हैं।
जिसके बाद उन्हें पकड़ा जाता है।
इस दौरान ग्रामीण मछलियों को अपने कुण्डियाड़ा, फटियाड़ा, जाल तथा हाथों से पकड़ते हैं,
जो मछलियां पकड़ में नहीं आ पाती हैं,और जो छोटी मछलियां नहीं पकड़ी जाती हैं।
वो कुछ देर बाद ताजे पानी में फिर होश में आ जाती हैं।
मौण मेले का प्रारम्भ 1866 में टिहरी नरेश ने किया था।
तब से जौनपुर में निरंतर मेले का आयोजन किया जाता है।
इसमें टिहरी नरेश स्वयं मौजूद रहते थे।
मौण मेले में सुरक्षा के लिए राजा के अनुचर उपस्थित रहते थे।
राजशाही के पतन के बाद सुरक्षा का जिम्मा ग्रामीण स्वयं उठाते हैं।
photographs by Raju Pushola