इस बार की दीपावली पर कोरोना के साथ-साथ एनजीटी के निर्देशों का भी असर पड़ेगा।
जिसके तहत उत्तराखंड में पटाखे जलाने की गाइडलाइन सुनिश्चित की गई है।
उत्तराखंड के 6 शहरों में दीपावली में केवल ग्रीन पटाखे भी जलाए जा सकेंगे।
उनके लिए भी समय निर्धारित किया गया है।
नियमों का उल्लंघन करने पर सख्त कार्यवाही की चेतावनी दे दी गई है।
राजधानी देहरादून, ऋषिकेश, रुद्रपुर , हरिद्वार , काशीपुर और हल्द्वानी में केवल ग्रीन पटाखे जला सकते हैं।
दीपावली और गुरु पर्व पर रात 8:00 बजे से रात 10:00 बजे तक और
छठ पूजा पर सुबह 6:00 बजे से सुबह 8:00 बजे तक ही ग्रीन पटाखे भी चलाने की अनुमति है।
उत्तराखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राजधानी देहरादून में दो और मॉनिटरिंग स्टेशन खोले हैं।
अब देहरादून में पांच मॉनिटरिंग स्टेशनों से प्रदूषण पर निगरानी रखी जाएगी।
अधिकारियों से 7 नवंबर से 21 नवंबर तक प्रदूषण स्तर में आए परिवर्तन की विस्तृत जानकारी मांगी गई है।
यह दो नए मॉनिटरिंग स्टेशन घंटाघर और नेहरू कॉलोनी में खोले गए हैं।
जिन ग्रीन पटाखों को लेकर इतने निर्देश जारी किए गए हैं उनकी वास्तविक स्थिति जानना जरूरी है।
यह ग्रीन पटाखे भारत का ही पहला उपक्रम है और
राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) के द्वारा इनकी खोज की गई है।
होते यह ग्रीन पटाखे पारंपरिक पटाखों जैसे ही हैं पर इनके जलने से प्रदूषण कम स्तर पर उत्सर्जित होता है।
इनसे 40 से 50 फ़ीसदी तक कम हानिकारक गैसें निकलती हैं।
जबकि सामान्य पटाखों से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फर गैस निकलती है।
नीरी के बनाए पटाखे
वाटर रिलीजर क्रैकर जो जलने के बाद पानी के कण पैदा करते हैं जिनमें सल्फर और नाइट्रोजन के कारण घुल जाते हैं।
सफल क्रैकर जिसमें एल्युमीनियम का प्रयोग 50 से 60 फीसदी तक कम किया गया है, जो सेफ मिनिमल एलुमिनियम कहा जाता है।
स्टार क्रैकर या सेफ थर्माइट क्रैकर जिनमें ऑक्सीडाइज़िंग एजेंट का प्रयोग किया जाता है। और यह हानिकारक सल्फर और नाइट्रोजन गैसों को बहुत कम उत्सर्जित करते हैं।
इनके साथ-साथ अरोमा क्रैकर्स भी बनाए गए हैं जिनसे हानिकारक गैसों का उत्पादन तो कम होगा ही इन्हें जलाने पर हल्की हल्की खुशबू भी आएगी।
मजे की बात यह है कि यह ग्रीन पटाखे फिलहाल भारत के बाजारों में उपलब्ध नहीं है।
इन्हें बाजार में आने में काफी समय लग सकता है।
इन्हें बाजार में उतारने से पहले इनकी सभी रासायनिक प्रॉपर्टीज का अध्ययन करना होगा
और तभी इसे बाजार में उतारने की अनुमति मिलेगी।
इस प्रकार यद्यपि यह भविष्य के लिए तो अच्छा प्रयास है।
परंतु इस दीवाली इन पटाखों की उपलब्धता संभवतः नहीं हो पाएगी।
अतः इस बार की दीवाली केवल दीयों के नाम ही रहने की संभावना है।