खास रिपोर्ट : उत्तराखंड पर भी गलवान घाटी का साया
लद्दाख की गलवान घाटी में चीन द्वारा LAC पर किये गए विश्वासघात को लेकर
उत्तराखंड से सटी सीमांत नीति माणा बॉर्डर की दर्जनों सामरिक चौकियों और बॉर्डर पर ITBP और सेना को अलर्ट कर दिया है,
गलवान घाटी में हुए चीनी दुस्साहस से हमारे वीर जवानों की शहादत पर
सीमांत नीति माणा घाटी के सेकेंड डिफेंस लाईन गाँवों के लोगों में चीन के प्रति भारी आक्रोश है,
चीन सीमा पर भारत चीन-तिब्बत सीमा से सटा देश का अंतिम सरहदी ऋतु प्रवासी भोटिया जनजाति बाहुल्य गांव “नीति”
जहाँ के सीधे साधे लोग देश की इस सरहदी सीमाओं पर सेकिंड डिफेंस लाईन बने हुए है,
देशभक्ति ऐसी की आजादी का जश्न स्वतन्त्रता दिवस को इस नीति घाटी के लोग दो दिनों तक पारंपरिक त्यौहार के रूप में मनाते हैं।
लेकिन दुर्भाग्य यह है कि ये सीमावर्ती गाँव आज भी विकास से कोसों दूर है,
फिर हम कैसे चीनी ड्रैगन को इस घाटी में सबक सिखाने की सोच सकते हैं,
फिर भी विषम भौगोलिक परिस्थितियों में अपनी भोटिया संस्कृति और परंपराओं को संजोये हुए
नीति घाटी के भोटिया समुदाय के लोग अपने वजूद को कायम रखे हुए हैं,
और चीन से तनातनी के बाद भी नीति घाटी के लोग बॉर्डर एरिया के गाँवों में डटे हुए हैं
हम बात कर रहे हैं उत्तराखण्ड के जनपद चमोली में सीमांत विकास खण्ड जोशीमठ
स्थित भारत -तिब्बत सीमा के अंतिम सरहदी गाँव नीति की,
या चीन की सरहद से सटे सूबे के आखिरी गांव नीति की जो जोशीमठ से 85 किलोमीटर की दूरी पर हैं
आजादी के बाद से नीति घाटी के ऋतुप्रवासी भोटिया जनजाति के लोग सीमा की द्वितीय रक्षा पंक्ति के प्रहरी माने जाते हैं,
जो आजादी के बाद से 1962 के इंडो चाइना वार के बाद सीमित साधनों के बावजूद बेखौफ होकर अपनी पुश्तैनी जमीन पर डटे हैं,
आजतक राज्य सरकार और केंद्र सरकार आजादी के बाद से अबतक सीमांत नीति घाटी के ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाएं नहीं दे पाई है।
प्रदेश सरकार अगर नीति घाटी के गांवों को ग्रामीण पर्यटन से जोड़ देती तो
इससे पलायन तो रुकता ही साथ ही यह प्राकृतिक सुंदरता से लबरेज खूबसूरत घाटी इको पर्यटन और सांस्कृतिक पर्यटन के लिए उत्तराखंड की स्पीति घाटी बन सकती है,
जिससे इस घाटी के लोगों को छह महीने रोजगार भी मिलेगा और सरहद भी सुरक्षित रहेगी ।
1962 के इंडो चाईना वार से पहले यहाँ के लोगों का तिब्बत के साथ वृहद व्यापार था
लेकिन अब 1962 के युद्ध के बाद भारत -तिब्बत व्यापार बंद हो गया ।
और पूरी नीति घाटी के लोग बेरोजगार हो गए, तब से अब तक यहाँ हालात सुधरे नहीं हैं,
मूल भूत सुविधाओं के अभाव के चलते इन ऊँचे तिब्बती धुरों पर बसे ऋतुप्रवासी गाँवों में कम ही लोग पहुँच पा रहे हैं
और पलायन का भूत यहाँ भी पैर पसार रहा है,
जिससे देश की इस सरहद पर द्वितीय रक्षा पंक्ति कमजोर हो रही है,
यदि समय रहते प्रदेश सरकार नीति घाटी कि चमक वापस लाने को यदि
इसे पर्यटन गांव के रूप में विकसित करे तो यहाँ पर्यटन की अपार क्षमता हैं।
बॉर्डर दर्शन के नाम से अपने देश को लोगों को सरहद के इस खूबसूरत घाटी का दीदार कराने का मौका दे
तो बेशक नीति घाटी के लोगों के अच्छे दिन जरूर आ सकते है,
देश के अंतिम सरहदी गाँव नीति से हमारे संवाददाता की खास रिपोर्ट,,