कल शनिवार का दिन उत्तराखंड में राजनीतिक तनातनी का दिन रहा।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने रायपुर विधानसभा में डीजल, पेट्रोल, गैस और खाद्य सामग्री के दामों में वृद्धि के खिलाफ साइकिल रैली निकाली।
उन्होंने कहा कि डीजल के दाम बढ़ जाने से महंगाई आसमान छू रही है,
लेकिन सरकार का इस पर कोई ध्यान नहीं है।
कांग्रेस निरंतर इन नीतियों के विरोध में प्रदर्शन करती रहेगी।
रैली सहस्त्रधारा क्रॉसिंग से प्रारंभ होकर विधानसभा पर समाप्त हुई।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विपिन कैंथोला ने कांग्रेस के प्रदर्शन की आलोचना की
और कहा कि पूरा विश्व कोरोना संक्रमण की महामारी से जूझ रहा है और मानवता को बचाना ही कठिन चुनौती है।
कांग्रेस ऐसे कठिन समय में आपदा प्रबंधन एक्ट का उल्लंघन करते हुए प्रदर्शन की नौटंकी कर रही है।
जिससे समाज में संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
कांग्रेस को इस संकट के समय राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को भूलकर समाज और सरकार के साथ मिलकर कोरोना से लड़ना चाहिए था।
परंतु वह राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं और जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं।
विपिन कैंथोला ने यह भी कहा कि कांग्रेस के नेताओं को यूपीए वन और यूपीए टू के दौरान तेल की कीमतों और महंगाई का भी आकलन करना चाहिए।
जब 2004 में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार गई थी पेट्रोल की कीमत लगभग 35 रुपए प्रति लीटर थी जबकि डीजल लगभग 22रुपए प्रति लीटर था।
यूपीए वन और यूपीए 2 के 10 वर्ष के कार्यकाल में पेट्रोल 35 से 71 रुपए प्रति लीटर और डीजल 22 से 56 रुपए प्रति लीटर पहुंच गया।
दालों की कीमत आसमान छूने लगी थी और लोग प्याज टमाटर खाने को तरस गए थे।
कांग्रेस ने गरीबों को हमेशा वोट बैंक के रूप में प्रयोग किया है।
कांग्रेस को कांग्रेस शासित प्रदेशों में भी महंगाई का आकलन करना चाहिए। और वहां भी प्रदर्शन करना चाहिए।
परंतु सच यह है कि इन दोनों राजनीतिक दलों की रस्साकशी में वास्तविक मुद्दे पीछे छूट जाते हैं।
सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या भाजपा की जनता को हमेशा महंगाई से दो चार होना पड़ा है।
आवश्यकता है कि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकारें राजनीति छोड़ कर पुख्ता कदम उठाएं।