एक मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुई, पली बढ़ी और शिक्षित हुई पूजा शुक्ला शुरू से ही तानाशाही के खिलाफ, और जनसेवा की ओर मुखर रही हैं |
उच्च शिक्षित होते हुए भी पूजा ने सरकारी नौकरी का चयन न करके समाजसेवा को अपना कार्यक्षेत्र चुना |
लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन कि खामियां रहीं हों, या
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार का नीतिगत विरोध रहा हो,
पूजा ने हर गलत मुद्दे पर सरकार और व्यवस्था का जम कर विरोध किया |
परन्तु असहिष्णु होती सरकारें अब लोकतंत्र का मूल स्वरूप भूलती जा रही हैं, जहां सरकार का विरोध अधिकार होता है, और युवा विरोधियों की बात सुनी जाती है, उनसे चर्चा की जाती है | यह माना जाता है कि यह कल का भविष्य हैं |
बहरहाल अपने मुखर विरोध के कारण पूजा शुक्ला अब उत्तरप्रदेश सरकार के निशाने पर आ चुकी है,
CAA/NRC के विरोध में जब पूजा लखनऊ में आंदोलन पर उतरी तो उत्तरप्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने उसे जनवरी में जेल भेज दिया,
पूजा हफ्तों जेल में रही, और
जमानत पर जेल से बाहर आई |
कोरोना संक्रमण के कारण जब देश में लॉक डाउन कर दिया गया,
उस दौर में भी पूजा शुक्ला गरीबों, मजबूरों और मजदूरों की मदद के लिए लखनऊ में निकल पड़ी |
लखनऊ के लगभग सभी हस्पतालों में भर्ती मरीजों के तीमारदारों को दिन और रात में खाने का पैकेट पहुंचाती रही,
अन्य प्रान्तों से पैदल वापस लौट रहे लोगों को भोजन कराती रही,
पूजा ने लखनऊ मेडिकल कॉलेज KGMC में मेडिकल स्टाफ को अपने निजी मद से PPE किट बांटने का काम भी किया
पूजा शुक्ला कि बढ़ती हुई लोकप्रियता उसे फिर सरकार के निशाने पर ले आई और उसके ऊपर पुराने मामलों में नई धाराएं लगाई जाने लगी हैं | यह कुल कवायद पूजा को जेल भेज कर उसके सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पण को तोड़ने की है
जिसका एक कारण तो वर्तमान सरकार से वैचारिक मतभेद है, जो कि संवैधानिक रूप से मौलिक अधिकार है |
वहीं यह आशंका भी जताई जा रही है कि पूजा के समान विचारधारा का प्रदर्शन करने वाले कुछ लोग भी पूजा की लोकप्रियता को पचा नहीं पा रहे हैं |
सरकार पूजा शुक्ला को जेल भेज पाएगी या अदालती दखल इस प्रशासनिक तानाशाही को रोक देगा
ये तो अलग विषय है |
परन्तु देश के बुद्धिजीवी आखिर कब तक लोकतांत्रिक मूल्यों के हनन पर मौन रहेंगे ? यह आज का यक्ष प्रश्न है |