उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार किसी विधानसभा सदस्य ने अपना नाम बदला।
जनपद हरिद्वार के झबरेड़ा के विधायक देशराज कर्णवाल ने अपना नाम बदला लिया।
विधायक देशराज कर्णवाल ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा कि,
हमारा देश भारत एक संसदीय लोकतान्त्रिक देश है जहां संविधान का राज स्थापित है |
जो प्रत्येक नागरिक की स्वतंत्रता,समानता एवं सामाजिक न्याय को सुरक्षित करने के लिए कार्यपालिका को बाध्य करता है।
ताकि प्रत्येक नागरिक की गरिमा की सुरक्षा के साथ आपसी भाईचारा स्थापित हो सके और देश की एकता और अखंडता कायम रहे।
बचपन से ही सामाजिक समरसता और समानता में मेरी गहरी आस्था रही है, जातीयता आधारित अन्याय अत्याचार और शोषण के दंश को मैंने बहुत नजदीक से अनुभव किया है।
जातीय आधार पर और नीच की सामाजिक मान्यता ने देश की अधिकांश आबादी को संक्रमित कर रखा है |
यह संक्रमण व्यक्ति की गरिमा को तो तार तार करता ही है साथ ही आपसी भाईचारे एवं देश की एकता और अखंडता को भी खंडित करता है।
‘‘जात- जात में जात है ज्यू केतन में पात, रैदास मानुष न जुड़ सके जब तक जात न जात’’
एक जाति का व्यक्ति अपनी जाति के आधार पर योग्यता के अभाव में भी अपने को सर्वश्रेष्ठ घोषित कर लेता है |
दूसरा व्यक्ति अपनी जाति के कारण नीच और कमीण कहलाया जाता है।
उसकी प्रतिभा, उसकी समझ, उसका अनुभव सब बेमानी सिद्ध हो जाता है।
जबकि हमारे संविधान की मूल भावना प्रत्येक नागरिक को पद और प्रतिष्ठा का समान अवसर प्रदान करने को प्रतिबद्ध है।
जाति रूपी संक्रमण के संबंध में मेरी मान्यता है कि अगर भारत से जातिवादी जहर को जड़मूल से नष्ट करना है तो जो जातियां अपनी जाति को एक अभिशाप समझ उसे छुपाने का प्रयास करती हैं और अपने को जातीय आधार पर हीन समझती हैं
उन सभी को अपनी अपनी जाति पर गर्व करना होगा तभी उनका जातीय अभिशाप उनके मान सम्मान और स्वाभिमान में तब्दील हो पायेगा।
‘‘पराधीनता पाप हैं जान ले रे मीत, रैदास पराधीन से कौन करे है प्रीत’’
जब तक व्यक्ति अपनी गरिमा और अपने स्वाभिमान की रक्षा करने में समर्थ नहीं हो सकता तब तक वो व्यक्ति समाज और देश की सुरक्षा करने में असमर्थ बना रहेगा।
‘‘पराधीन का दीन क्या पराधीन बेदीन, रैदास पराधीन को सबही समझत हीन’’
जब मैं झबरेड़ा विधानसभा से चुन कर विधायक के रूप में विधान सभा पहुंचा |
जहाँ संविधान संगत जनहित में कानून कायदे निर्धारित होते हैं जिसे मैं प्रदेश का सबसे बड़ा लोकतंत्र का मंदिर समझता हूं।
जिसका प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा का दायित्व का जिम्मा है।
“ब्राह्मण मत पूजिये जो होव गुणहीन, पूजिये चरण चांडाल के जो होव गुणप्रवीन’’
वहां भी मेरा सामना जातिवादी संक्रमण से हुआ कुछ विधायक अपने जातीय गौरव के भरम में विधायक की संवैधानिक मर्यादा को तोड़ते नजर आये।
वो विधायक से ज्यादा अपने को बाहुबली और स्वयंभू राजा सिद्ध कर रहे थे।
लोकतंत्र के मंदिर में जहाँ रानी और नौकरानी के बेटे की राजनीतिक हैसियत एक समान होती है
मैंने भी समानता के आधार पर अपनी सामाजिक हैसियत जो जातीय आधार पर आधारित है, माननीय विधान सभा अध्यक्ष महोदय से निवेदन किया
कि जिस प्रकार अन्य विधायक अपने उपनाम ठाकुर, शर्मा, अग्रवाल.. रावत और नेगी आदि को अपने नाम के साथ लगाते हैं ठीक उसी प्रकार मेरे नाम के साथ भी मेरी जाति उपनाम लगाने की इजाजत दें |
देशराज कर्णवाल चमार साहब, जिस पहचान से मेरे क्षेत्र की जनता मुझे पहचानती है,
अन्यथा सभी विधायकों के उपनाम को हटाया जाये।
यह संकल्प मेरे द्वारा विधानसभा में लाया गया जिस पर चर्चा जारी है |
लेकिन दुर्भाग्यवश न्याय विभाग ने सर्वोच्च न्यायालय का हवाला देते हुए मेरी मांग को अस्वीकार कर दिया , न्याय विभाग के निर्णय से मैं हैरान तो था लेकिन हताश नहीं।
हैरान था तो सिर्फ इस बात से कि आजादी के सत्तर वर्षों बाद भी लोकतंत्र के मंदिर में समरसता और समानता की पैरोकारी की अनदेखी हो रही हैं ।
लेकिन मेरा सामाजिक समरसता और समानता को स्थापित करने का हौसला कम नहीं हुआ प्रयासों से एक दिन में अपने मकसद में सफल हुआ।
पहले मेरा नाम संवैधानिक संस्थाओं में देशराज कर्णवाल था
आज से मेरा संशोधित नाम भारत के राजपत्र के अनुसार विधानसभा उत्तराखंड के द्वारा देशराज कर्णवाल “चमार साहब’’ हो गया है।
यह सामाजिक समरसता एवं समानता का मेरा प्रयास एक न एक दिन जरूर रंग लाएगा
एक दिन जरूर जाति आधारित सामाजिक, समानता, सामाजिक समरसता में तब्दील हो जाएगी ऐसा मुझे पूर्णविश्वास हैं ,
जहाँ हम सभी देशवासी जाति, धर्म एवं नस्ल से ऊपर उठ अपनी पहचान को भारतीय होने पर ज्यादा गर्व करेंगे और देश में आपसी भाईचारे को स्थापित करने में सफल हो पायेंगें।
‘‘ऐसा चाहूँ राज में , जहाँ मिले सबन को अन्न,चोट बड़ सब सम बसे, रहे रविदास प्रसन्न’’
मेरा यह प्रयास देश की संसद से लेकर सभी विधान सभाओं में पहला प्रयास है,
हो सकता है कुछ लोग मेरे इस प्रयास से सहमत न हों यह उनका संवैधानिक अधिकार है
लेकिन जाति प्रधान देश में जाति के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता
और इसे निष्प्रभावी करने का इससे बेहतर और कोई रास्ता मेरी नजर में नहीं सूझता।
एक लोकप्रिय कहावत के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूँ कि लोहे को लोहा ही काट सकता है।
और यह सर्वविदित है कि
‘‘चर्म मांस रक्त का, तन बना आकर,आँख उठाकर देख ले, सारा जगत चमार’’
कार्यक्रम के बाद विधायक देशराज कर्णवाल अपने साथियों के साथ विधिवत रूप से दिल्ली तुगलकाबाद रविदास मंदिर जाएंगे और वहां पर संत महात्माओं के आशीर्वाद से नाम करण होगा।