Home उत्तराखंड उत्तराखण्ड यूसीसी- लिव इन रजिस्ट्रेशन नहीं कराने पर 6 माह की सजा

उत्तराखण्ड यूसीसी- लिव इन रजिस्ट्रेशन नहीं कराने पर 6 माह की सजा

यूसीसी- लिव इन रिलेशनशिप डिक्लेयरेशन जरूरी, लिव-इन में पैदा बच्चों को संपत्ति में मिलेगा अधिकार

“एक भारत, श्रेष्ठ भारत” का मजबूत आधार स्तम्भ बनेगा -सीएम धामी

देखें, उत्तराखण्ड यूसीसी के मुख्य बिंदु

हर धर्म में तलाक के लिए एक ही कानून, सख्त बनाए गए नियम, बगैर अधिकृत तलाक कोई नहीं कर पाएगा दूसरी शादी

विवाह की धार्मिक मान्यताओं, रीति-रिवाज, खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर कोई असर नहीं

सदन में खूब हुई सीएम धामी की तारीफ

देहरादून। सीएम धामी सरकार के समान नागरिक संहिता UCC बिल के सदन में पेश होने के बाद भाजपा सरकार ने 2022 के चुनावी संकल्प को पूरा करने की दिशा में ठोस कदम बढ़ा दिए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार के 11 बजे सदन में यूसीसी विधेयक पेश किया। इसके बाद भाजपा ने सीएम की प्रशंसा में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

यूसीसी विधेयक से जुड़े खास तथ्य

समान नागरिक संहिता (UCC) के रूप में एक ऐसा कानून जो जो जाति से परे, धर्म से परे, यहां तक कि आप स्त्री हैं या पुरुष, इससे भी परे होगा। जिस कानून में आम और खास का भेद नहीं होगा। यानि जो सभी के लिए एक समान होगा। 202 पेज के समान नागरिक संहिता विधेयक 2024 का ड्राफ्ट हर पहलू पर विचार विमर्श करने के बाद तैयार किया गया है।

ड्राफ्ट में शादी, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों को ही शामिल किया गया है। इन विषयों, खासतौर पर विवाह प्रक्रिया को लेकर जो प्रावधान बनाए गए हैं उनमें हर जाति, धर्म अथवा पंथ की परम्पराओं और रीति रिवाजों से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है।

वैवाहिक प्रक्रिया में धार्मिक मान्यताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। धार्मिक रीति-रिवाज जस के तस रहेंगे। ऐसा भी नहीं है कि शादी पंडित या मौलवी नहीं कराएंगे। खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। लेकिन सख्ती इस बात पर की गई है कि हर दम्पती को अनिर्वाय रूप से अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन करना पड़ेगा।

अन्यथा वे सरकारी सुविधाओं का लाभ लेने से वंचित रहेंगे। तलाक के बगैर कोई व्यक्ति दूसरी शादी नहीं कर पाएगा। ऐसा करने पर उसे दण्ड या आर्थक दण्ड या फिर दोनो भुगतने होंगे।

विधेयक में जहां एक ओर विवाह, तलाक और विवाह की शून्यता के पंजीकरण के लिए सुगम एवं सरल प्रक्रिया बनाई गई है। सम्बंधित दम्पती और अधिकारियों की भी जिम्मेदारी व जवाबदेही तय की गई है। यदि कोई नागरिक विवाह का पंजीकरण करने में अनदेखी करता है या नियमों का पालन नहीं करता है तो उसके लिए अधिकतम 25000 के अर्थदण्ड का प्राविधान रखा गया है। साथ ही यदि उप निबंधक जानबूझकर संहिता में निहित कार्यवाही करने में विफल रहता है तो वह भी अधिकतम 25 हजार रुपये के अर्थदण्ड का अधिकारी होगा।

विवाह, तलाक एवं विवाह की शून्यता के पंजीकरण के लिए एक सरकारी तंत्र बनाया जाएगा। जिसमें महा निबंधक सचिव स्तर, निबंधक उपजिलाधिकारी एवं उप निबंधक राज्य सरकार के अधिसूचित अधिकारी होंगे। नागरिकों के पास सूचना का अधिकार की तर्ज पर रजिस्ट्रेशन को लेकर अपील का अधिकार भी होगा। निबंधक एवं महा निबंधक दो अपीलीय स्तर के अधिकारी होंगे। साथ ही हर स्तर पर पंजिका का रखरखाव किया जाएगा। ताकि पारदर्शिता बनी रहे। अपील के लिए समयबद्ध समय सीमा भी तय की गई है, ताकि प्रक्रिया में अनावश्यक देरी न हो।

संहिता में दाम्पत्य अधिकारों को सरुक्षित बनाने के हर संभव प्रावधान किए गए हैं। साथ ही जो महर, प्रभूत, स्त्रीधन या कोई अन्य सम्पत्ति जो पत्नी को उपहार स्वरूप दी गई है, वह भरण पोषण के दावे में सम्मिलित नहीं होकर अतिरिक्त होगी। 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे की अभिरक्षा सामान्यत माता के पास रहेगी। संहिता में बच्चों की अभिरक्षा के अन्तर्गत बच्चों का हित सर्वोत्तम एवं कल्याण सर्वोपरि होगा। कोई विवाद होने पर दम्पती के मेल मिलाप के लिए न्यायालय हरसंभव समुचित प्रयास करेंगे।

शून्य एवं शून्यीकरण विवाह के लिए नियम बनाए गए हैं। विवाह विच्छेद के लिए किसी भी पक्ष को मारकर्म, क्रूरता, कम से कम दो वर्ष तक बिना युक्तियुक्त कारण से अलगाव, धर्म परिवर्तन, विकृत चित, निरन्तर मानसिक विकार, संचारी यौन रोग, लगातार 7 वर्ष तक किसी पक्ष के जीवित रहने की सूचना नहीं होने का आधार लिया गया है। विवाह विच्छेदन की कार्यवाही अनुतोष एवं आपसी सहमति से ही जा सकेगी। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि किसी भी प्रथा, रूढ़ि परम्परा या किसी पक्षकार को किसी व्यक्तिगत विधि या अधिनियम के अनुसार विवाह विच्छेदन (तलाक) नहीं हो सकेगा।

इस संहिता के लागू होने के बाद संहिता में प्राविधानित प्रक्रिया के अनुसार ही विवाह विच्छेदन होगा। पुरुष-महिला को तलाक देने के समान अधिकार होंगे। लिव-इन रिलेशनशिप डिक्लेयर करना जरूरी होगा। लिव इन रजिस्ट्रेशन नहीं कराने पर 6 माह की सजा होगी। लिव-इन में पैदा बच्चों को संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन एवं प्रेरणा से हमने वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता से राज्य में समान नागरिक संहिता कानून लाने का जो ‘संकल्प’ प्रकट किया था, उसे आज हम पूरा करने जा रहे हैं। हमारी सरकार ने पूरी जिम्मेदारी के साथ समाज के सभी वर्गों को साथ लेते हुए समान नागरिक संहिता का विधेयक विधानसभा में पेश कर दिया है। देवभूमि के लिए वह ऐतिहासिक क्षण निकट है जब उत्तराखण्ड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” का मजबूत आधार स्तम्भ बनेगा।

समान नागरिक संहिता उत्तराखण्ड के मध्य एक प्रगतिवादी, लोकप्रिय एवं सर्ववर्ग ग्राही संहिता साबित होगी। यह संहिता उत्तराखण्ड के नागरिकों के उच्च मानसिक स्तर का द्योतक होगी तथा राज्य के विकास में एक मील का पत्थर साबित होगी- सीएम धामी

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